Durga Tantram (दुर्गातन्त्रम)
₹170.00
Author | Pt. Shivdatt Mishra |
Publisher | Savitri Thakur Prakashan, Varanasi |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2023 |
ISBN | - |
Pages | 224 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0125 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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दुर्गातन्त्रम (Durga Tantram) आचार्य पण्डित शिवदत्त मिश्र शास्त्री-द्वारा सम्पादित ‘दुर्गातन्त्रम्’ नामक नवीन अन्य का सम्यक् अवलोकन किया। श्री शिवदत्त मिश्र शास्त्री-उपासना, अनुष्ठान, अर्चन, समज्या एवं पारायण-सम्बन्धी संस्कृत के वाङ्मय-रत्नों का उद्धार करने में चालीसों वर्षों से लगे हैं। ‘दुर्गा-सप्तशती’ के अनेक मूल और अर्थसहित संस्करणों का इन्होंने सम्पादन किया है। बड़े अक्षरों वाली, साँची आकार की दुर्गा सप्तशती, किताबी, पाठो- पयोगी मूल-गुटका (छोटी) और गुटका (जेब साइज) आदि के सम्पादन द्वारा सप्तशती-पारायण प्रेमियों का बड़ा कल्याण किया है। दुर्गा-कवच को भी हिन्दी टीका सहित पाठोपयोगी संस्करण बड़े सुन्दर रूप से सम्पादित किया है।
इस क्रम में दुर्गा-पूजा और सम्पुट पाठ-विधियों शतचण्डी, सहस्रचण्डी आदि के अनुष्ठानादि का भी यथास्थान विशद विवरण देते हुए तत्तत् पद्धतियों का निर्देश किया है। इनमें दुर्गार्चन-पद्धति विशेष महत्त्व की कृति है, उसमें पञ्चाङ्गपूजन सहित जैसे- गौरी-गणेश पूजन, कलश-वरुणाद्यावाहित देवपूजन, पुण्याहवाचन आदि तथा दुर्गासप्तशती के साथ शतचण्डी विधान-अनुष्ठान और हवन की विधि का ऐस वर्णन किया है जिससे सामान्य संस्कृतविज्ञ और वेदपाठविधिज्ञ व्यक्ति भी बड़ी आसानी से अनुष्ठान कर-करा सकते हैं। इस क्रम में मन्त्र प्रतिलोम-दुर्गासप्तशती- जो सम्भवतः विशिष्ट तान्त्रिक दुर्गा सप्तशती के अनुष्ठान का ग्रन्थ है-उसका भी। पाण्डित्यपूर्ण संस्करण निकाला है। इसी क्रम में इस स्व-सङ्कलित-हिन्दी टीका सहित ‘दुर्गातन्त्रम्’ नामक अपूर्व कृति की रचना और सम्पादन शास्त्रीय आधार पर श्री मिश्र जी ने किया है।।
इस कृति के बारे में दो पंक्ति लिखने के पूर्व मैं श्री मिश्र जी की कुछ प्रमुख कृतियों का नामोल्लेख करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ। इन्होंने अन्यान देवी-देवताओं से सम्बन्धित ग्रन्थों का भी सम्पादन किया है, उनमें कुछ महत्त्वपूर्ण है- १. बगलामुखी-रहस्य, २. काली-रहस्य, ३. गायत्री-रहस्य, ४. शिव-रहस्य, ५. हनुमद्-रहस्य, ६. राम-रहस्य, ७. वाञ्छाकल्पलता, ८. अध्यात्म रामायण, ९. पाराशर स्मृति, १०. कनकधारा स्तोत्र, ११. ग्रह-शान्ति-पद्धति आदि। श्री शिवदत्त मिश्र जी ने अनेक रहस्यान्त ग्रन्थों के निर्माण द्वारा सम्बद्ध देव के पूजन और अनुष्ठान एवं स्तोत्र समृद्ध वाड्मय को सनातनधर्मी उपासना प्रिय जनता के सम्मुख उद्घाटित कर दिया है। पण्डित जी ने कर्मकाण्ड सम्बन्धी पद्धतियाँ भी अनेक सम्पादित की है। इनमें प्रमुख हैं- १. वाशिष्ठी-हवन पद्धति, २. विवाह-पद्धति, ३. उपनयन-पद्धति, ४. पञ्चाङ्गपूजा-पद्धति, सत्यनारायण व्रत कथा, सङ्कष्ट-गणेश चतुर्थी व्रत कथा आदि का भी इन्होंने सम्पादन किया। लघुसिद्धान्त कौमुदी, लघुकौमदी रहस्य का भी आपने छात्रोपयोगी एवं संस्कृत सीखने के जिज्ञासुओं की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संस्करण निकाला है।
इस प्रकार पण्डित शिवदत्त मिश्र शास्त्री ने सनातन धर्म-प्रेमियों, धर्मानुष्ठानकारियों के लिए सैकड़ों से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तकों का लेखन- सम्पादन-सङ्कलन और हिन्दी टीका करके संस्कृत के एक क्षेत्र को समृद्ध बनाकर सनातनी हिन्दुओं के लिए सुलभ कर दिया है बृहत्स्तोत्र-रत्नाकर इनका एक सराहनीय संस्कृत-स्तोत्रों का सङ्कलन है। इन्होंने रुद्राष्टाध्यायी के भी तीन-चार प्रकार के संस्करणों का सम्पादन किया है। वेदमन्त्रों के स्वरचिह्नाङ्कयुक्त प्रत्येक पद को अलग-अलग सम्पादन कर मूलं तथा हिन्दी अनुवाद-सहित रुद्राष्टाध्यायी का सम्पादन अत्यन्त स्वागतार्ह और रुद्राष्टाध्यायी- पाठकर्ताओं के लिए बड़े काम का ग्रन्थ है। आपका पुरुषोत्तम माहात्म्य का हिन्दी- अनुवाद-सहित सम्पादन भी धर्मपरायण हिन्दू जनता के लिए विशेष लाभदायक सिद्ध हुआ है, अध्यात्मरामायण को भी हिन्दी अनुवाद तथा श्लोकानुक्रमणिका के साथ इन्होंने सम्पादित किया है।
इतना ही नहीं, वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड का मूल गुटका रूप में विशुद्ध संशोधन-सम्पादन के साथ पाठोपयोगी संस्करण इनका अत्यन्त श्लाघनीय कार्य है। शताधिक विविध विधावाली धार्मिक-सांस्कृतिक कृतियों के सम्पादक एवं अनुवादक आचार्य पं. शिवदत्त मिश्र के पूरे कृतित्व का, जो शताधिक हैं- मैं उनका यहाँ वर्णन नहीं करूँगा। यहाँ न स्थान है, न प्रसंग। दुर्गा-तन्त्रम् – प्रस्तुत ‘दुर्गातन्त्रम्’ के विषय में सिंहावलोकन रूप से मैं दो शब्द पाठकों की सेवा में निवेदित कर रहा हूँ। धर्मप्राण जनता अवश्य इस अन्ब को पढ़े। इसमें जगज्जननी पराम्बा त्रिगुणात्मिका, आद्याशक्ति, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती-स्वरूपा, जगदम्बा, जगदात्मिका श्री माँ दुर्गा के पूजन-स्वतन-पाठ, यन्त्रपूजन, मन्त्रोद्धार तथा दुर्गापूजाविधि एवं विविध देवी दुर्गा की स्तुतियाँ है।
प्रस्तुत दुर्गातन्त्र में एक सन्दर्भ अपूर्व है। मैंने वह नहीं देखा था वह है- ‘दकारादि-दुर्गासहस्रनाम स्तोत्रम्’ इन दकारादि-सहस्त्रनामों को ॐकार पूर्वक चतुथ्यैकवचन विभक्ति विपरिणमित ‘नमः ‘कारान्त रूप में करके आचार्य शिवदत्त मिश्र जी ने ‘दकारादिदुर्गासहस्त्रनामावली’ को भी इस ग्रन्थ में तद्विधसहस्रनाम पाठकर्ताओं की सुविधा के लिए प्रस्तुत कर दिया है। सप्तशती के प्रत्येक अध्याय के क्रमानुसार बीज मन्त्रों का संकलन भी इस ग्रन्थ की विशिष्टता है। एक साधु ने मुझे बताया है कि ‘दुर्गासहस्रनामावली’ एक प्रमुख तान्त्रिक नामावली है। अड़हुल (लाल देशी पुष्प) को साकल्य में मिला कर, घृताहुति और उक्त साकल्याहुति का नव दिनों तक हवन करने से सर्वाभीष्ट-सिद्धि होती है। सर्वरोग निवृत्ति होती है और शत्रु एवं विरोधियों का नाश हो जाता है। धर्मार्थ- काम-मोक्षरूप पदार्थ चतुष्टय सिद्ध होते हैं। आचार्य पं. शिवदत्त मिश्र शास्त्री को उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी, लखनऊ से अनेक बार पुरस्कार भी मिले हैं।
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