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Dwadash Jyotirling (द्वादश ज्योतिर्लिंग)
₹40.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Hindi |
Edition | 3rd edition |
ISBN | - |
Pages | 256 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0065 |
Other | Code - 2155 |
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द्वादश ज्योतिर्लिंग (Dwadash Jyotirling) मान्यता है कि इन 12 जगहों पर शिव जी ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं, इस वजह से इन 12 मंदिरों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमाशंकर, विश्वेश्वर (विश्वनाथ), त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घुष्मेश्वर (घृष्णेश्वर) शामिल हैं।
लिंग कहते हैं चिह्न को – ‘आकृतिर्जातिलिङ्गाख्या।’ शिवपुराण में बताया गया है कि सबसे पहला लिंग ज्योतिस्तम्भ रूप है; जो प्रणव (ॐ) है। यह सूक्ष्म लिंग प्रणव रूप तथा निष्कल है। स्थूल लिंग सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है।
निर्गुण निराकार ब्रह्म शिव ही लिंग के मूल कारण हैं तथा स्वयं लिंग रूप भी हैं। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध आदि से रहित अगुण, अलिंग (निर्गुण) तत्त्व को ही शिव कहा गया है तथा शब्द-स्पर्श-रूप-रस- गन्धादि से संयुक्त प्रधान प्रकृति को ही उत्तम लिंग कहा गया है, वह जगत्का उत्पत्ति-स्थान है, पंचभूतात्मक अर्थात् पृथ्वी, जल, तेज, आकाश और वायु से युक्त है; स्थूल है, सूक्ष्म है, जगत्का विग्रह है तथा यह लिंग तत्त्व निर्गुण परमात्मा शिव से स्वयं उत्पन्न हुआ है।
सम्पूर्ण जगत्को ही लिंगभूत माना गया है, शिवजीके सम्पूर्ण लिंगों की कोई निश्चित संख्या नहीं है; क्योंकि –
सर्वा लिङ्गमयी भूमिः सर्वं लिङ्गमयं जगत् ॥
लिङ्गयुक्तानि तीर्थानि सर्वं लिङ्गे प्रतिष्ठितम्। (शिवपुराण, कोटिरुद्रसंहिता १।९-१०)
‘यह समस्त पृथ्वी लिंगमय है और सारा जगत् लिंगमय है। सभी तीर्थ लिंगमय हैं; सारा प्रपंच लिंग में ही प्रतिष्ठित है।’
यद्यपि पृथ्वी के समस्त शिव लिंगों की गणना तो नहीं की जा सकती, पर उनमें द्वादश ज्योतिर्लिंग प्रधान हैं, जिनका अपरिमित माहात्म्य है-सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्री शैलपर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकाल, ओंकार तीर्थ में परमेश्वर, हिमालय के शिखर पर केदार, डाकिनी क्षेत्र में भीमशंकर, वाराणसी में विश्वनाथ, गोदावरी के तटपर त्र्यम्बक, चिता भूमि में वैद्यनाथ, दारुका वन में नागेश, सेतु बन्ध में रामेश्वर तथा शिवालय में घुश्मेश्वर का स्मरण करना चाहिये। जो प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इन बारह नामों का पाठ करता है, उसके सभी प्रकार के पाप छूट जाते हैं और उसे सम्पूर्ण सिद्धियों का फल प्राप्त हो जाता है –
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारे परमेश्वरम् ॥
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशङ्करम् । वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे ॥
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने । सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये ॥
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्। सर्वपापविनिर्मुक्तः सर्वसिद्धिफलं लभेत् ॥ (शिवपुराण, कोटिरुद्रसंहिता १।२१-२४)
इन बारह ज्योतिर्लिंगों को परमात्मा शिव का ‘अवतार द्वादशक’ कहकर इनके दर्शन तथा स्पर्शसे सर्वानन्दप्राप्तिकी बात बतलायी गयी है-
अवतारद्वादशकमेतच्छम्भोः परात्मनः । सर्वानन्दकरं पुंसान्दर्शनात्स्पर्शनान्मुने ॥ (शिवपुराण, शतरुद्रसंहिता ४२।५)
इन लिंगों पर चढ़ाया गया प्रसाद सर्वदा ग्रहण करने योग्य होता है, उसे श्रद्धा से विशेष यत्नपूर्वक ग्रहण करना चाहिये। ऐसा करने वाले के समस्त पाप उसी क्षण विनष्ट हो जाते हैं।
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