Geeta Prabodhani (गीता प्रबोधनी)
₹80.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 51th edition |
ISBN | - |
Pages | 445 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 3 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0068 |
Other | Code - 1562 |
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CompareDescription
गीता प्रबोधनी (Geeta Prabodhani) गीता-ज्ञान को जाननेका परिणाम है- ‘वासुदेवः सर्वम्’ का अनुभव हो जाना। इसके अनुभव में ही गीता की पूर्णता है। यही वास्तविक शरणा गति है। तात्पर्य है कि जब भक्त शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धि सहित अपने-आपको भगवान्के समर्पित कर देता है, तब शरणागत (मैं-पन) नहीं रहता, प्रत्युत केवल शरण्य (भगवान्) ही रह जाते हैं, जिनमें मैं-तू-यह-वह चारों का ही सर्वथा अभाव है। इसलि ये जब कोई महात्मा गीता को जान लेता है, तब वह मौन हो जाता है। उसके पास कुछ कहने या लिखने के लिये शब्द नहीं रहते।
वह साधकों के प्रति गीता के विषय में कुछ भी कहता है तो वह शाखाचन्द्रन्याय से संकेत मात्र होता है। लगभग बीस वर्ष पहले मैंने गीतापर ‘साधक-संजीवनी’ नामक विस्तृत हिन्दी टीका लिखी थी। जिज्ञासु साधकोंने उसे बड़े उत्साहपूर्वक अपनाया और उससे लाभ भी उठाया। फलस्वरूप अबतक उसकी लगभग साढ़े चार लाख प्रतियाँ मुद्रित हो चुकी हैं। इसके साथ ही साधकोंकी यह माँग भी बढ़ती रही कि ‘साधक संजीवनी’ का कलेवर बहुत बड़ा होनेसे इसे अपने साथ रखनेमें कठिनाई होती है तथा विस्तार अधिक होनेसे पूरा पढ़नेके लिये समय भी नहीं मिल पाता।
इसे ध्यानमें रखते हुए गीतापर एक संक्षिप्त टीका लिखनेका विचार किया गया, जो ‘गीता- प्रबोधनी’ नामसे साधकोंकी सेवामें प्रस्तुत है। इसमें गीताके मूल श्लोक एवं अर्थके साथ संक्षिप्त व्याख्या दी गयी है। परन्तु सभी श्लोकोंकी व्याख्या नहीं दी गयी है। अनेक श्लोकोंका केवल अर्थ दिया गया है। टीकाको संक्षिप्त बनानेकी दृष्टि रहनेसे व्याख्याका विस्तार करनेमें संकोच किया गया है। अतः साधकको यदि किसी व्याख्याका विषय विस्तारसे समझनेकी आवश्यकता प्रतीत हो तो उसे ‘साधक-संजीवनी’ टीका देखनी चाहिये। गीता के भावोंका अन्त न होनेसे इस ‘गीता- प्रबोधनी’ टीकामें भी कुछ नये भाव आये हैं, जो अन्य किसी टीकामें हमारे देखनेमें नहीं आये। साधकोंसे प्रार्थना है कि वे किसी मत, सम्प्रदाय आदिका आग्रह न रखते हुए इस टीकाको पढ़ें और लाभ उठायें।
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