Geeta Sangrah (गीता संग्रह)
₹120.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 11th edition |
ISBN | - |
Pages | 672 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 3 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0067 |
Other | Code - 1958 |
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CompareDescription
गीता संग्रह (Geeta Sangrah) ‘गीता’ – इस शब्द का सनातन धर्म और संस्कृतिमें अत्यन्त विशिष्ट महत्त्व है। कुरुक्षेत्रमें युद्धके लिये कौरवों और पाण्डवोंकी सेनाएँ भयानक अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित होकर खड़ी थीं। महाविनाशकी स्पष्ट सम्भावना तथा स्वजनोंके मोहके कारण अर्जुन अपने कर्तव्यसे विचलित होकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये थे। इन्हीं विषम परिस्थितियोंमें भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुनको जिस ज्ञानामृतका पान कराकर उत्साहित एवं स्वस्थचित्त किया, वही भगवद्गीता है। महाभारतमें समाहित सात सौ श्लोकोंवाली इस दिव्य रचनामें जो ज्ञान समाहित है, वह मनुष्यमात्रके लिये विषम-से-विषम परिस्थितियोंमें भी संजीवनीतुल्य है। इसी कारण यह जन-जनमें लोकप्रिय होकर मात्र ‘गीता’ के नामसे प्रख्यात हुई।
वस्तुतः वेदों के तीन भाग हैं- कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड एवं ज्ञानकाण्ड। इसमें ज्ञानकाण्ड अन्तिम है इसलिये इसे ‘वेदान्त’ भी कहते हैं। उपनिषदोंका मुख्य विषय प्रायः यही है। उपनिषदोंमें गूढ़ भाषाशैलीमें वर्णित इसी ज्ञानतत्त्वको प्रायः विभिन्न गीताओंमें सरल, सुबोध भाषाशैलीमें अभिव्यक्त किया गया है। कहीं-कहीं उसे समझानेके लिये मनोरंजक दृष्टान्तों अथवा सहायक अनुकूल पृष्ठभूमिका भी सम्यक् उपयोग किया गया है।
‘गीता’ के मूलमें संस्कृतका ‘गीतम्’ शब्द है, परंतु ‘उपनिषद्’ शब्द स्त्रीलिंग होने तथा उसके अनुकरणके कारण ‘गीता’ शब्द बना माना जाता है। इसीलिये विभिन्न गीताओंकी पुष्पिकाओंमें भगवद्गीतोपनिषद्, भगवतीगोतोपनिषद्, शिवगोतोपनिषद् इत्यादि पाया जाता है। विभिन्न गीताओंमें भगवान्के भिन्न-भिन्न स्वरूपोंकी विभूतियों का भी विशद् विवरण तथा श्रोताद्वारा विस्मित होकर की गयी उनकी स्तुतियाँ भी मिलती हैं अतएव ‘गीयते स्तुयते यः स गीता’- ऐसा भी कह सकते हैं।
गीताप्रेसद्वारा सर्वमान्य श्रीमद्भगवद्गीता तो विभिन्न भाष्यों, टीकाओंके साथ विभिन्न रूपोंमें प्रारम्भसे ही सतत प्रकाशित हो रही है, परंतु अन्यान्य महत्त्वपूर्ण गीताएँ आज भी जनसामान्यके लिये दुर्लभ हैं। अधिकाधिक गीता-ग्रन्थ प्रमाणिक पाठ तथा सुबोध हिन्दी अनुवादके साथ विज्ञ पाठकोंको एकत्र उपलब्ध हो जायें तथा हमारी आर्ष ज्ञानराशि भी सुरक्षित तथा संरक्षित रहे इसी भावनासे विभिन्न गीताओंका सानुवाद संग्रह प्रकाशित किया जा रहा है। सुविधाजनक आकारवाले प्रस्तुत गुच्छकमें गणेशगीता, हंसगीता, नारदगीता, रामगीता, उत्तरगीता, अष्टावक्रगीता, अवधूतगीता, हारीतगीता, यमगीता, भगवतीगीता इत्यादि कुल २५ गीताओंको सानुवाद संकलित किया गया है। आशा है आर्ष साहित्यके प्रेमी तथा आत्मकल्याणके इच्छुक सभी पाठक इसका अध्ययन करके लाभान्वित होंगे।
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