Gitartha Sangraha (गीतार्थ संग्रह:)
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Author | Govinda Acharya |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2013 |
ISBN | 978-93-82443-45-2 |
Pages | 125 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0292 |
Other | Dispatched in 3 days |
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गीतार्थ संग्रह: (Gitartha Sangraha) भारतवर्ष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के जनमानस को ज्ञान से आप्लावित करती हुयी श्रीमद्भगवद्गीता एक अध्यात्मशास्त्र है, जो कि स्वयं अखिलकोटिब्रह्माण्डनायक लीलापुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र द्वारा अनादिकाल से भवसागर में जन्ममरण के चक्र में भ्रान्त जीवों को अभिलक्षित करके उनके उद्धारार्थ युद्ध से पलायनोन्मुख अर्जुन का बहाना बनाकर उपनिषद् (वेदान्तशास्त्र) के गूढतम तत्त्वों के साथ उपदिष्ट है। लगभग ७०० सुन्दर पद्यों से समलंकृत श्रीमद्भगवद्गीता पर जगद्गुरु श्रीरामानुजाचार्य स्वामीजी ने अद्भुत, मनोरम एवं भावगम्भीर किन्तु सरलभाषा में भाष्य का प्रणयन किया है। इससे भी पूर्व परमाचार्य श्रीयामुनाचार्य स्वामीजी महाराज ने गीता के अठारह अध्यायों के सात सौ श्लोकों का सार केवल बत्तीस श्लोकों में संग्रह कर उसे उसे गीतार्थसंग्रह का स्वरूप दिया है।
इसके प्रथमश्लोक में गीताजी के द्वारा प्रतिपाद्य विषय का निरूपण किया गया है और उससे आगे तीन श्लोकों से गीता के तीन षट्कों (छह-छह अध्यायों) का सारसंग्रह किया गया है। उसके बाद एक-एक श्लोक से प्रत्येक अध्याय का सारसंग्रह किया गया है। इस तरह केवल बाईस श्लोकों से गीतार्थ का संग्रह करके शेष दस श्लोकों से कर्म, ज्ञान, भक्ति, प्रपत्ति, ऐकान्तिक एवं परमैकान्तिक भक्तों के स्वरूप तथा भगवान् के वास्तविक स्वरूप का वर्णन किया गया है।
इस प्रकार अत्यन्त साररूप में श्रीस्वामीजी ने केवल ३२ श्लोकों से गीता के गम्भीर भावों को इस तरह से संगृहीत किया है जैसे गागर में सागर। गीतार्थसंग्रह के अन्त में इति गीतार्थसंग्रहः इस वाक्य से श्रीस्वामी जी स्वाभिप्राय प्रकट करते हैं कि जो विषय गीतार्थसंग्रह में उपस्थापित किया गया है, वह ही सत्त्वनिष्ठ सम्प्रदायानुगुण आचार्यपरम्परा से प्राप्त समीचीन गीतार्थ है तथा अपनी योगमहिमा के द्वारा सम्पूर्ण याथातथ्येन ज्ञान कर लिया है उस परमपुरुष की दोनों विभूतियों को जिन्होंने, ऐसे नाथमुनि स्वामी जी की आज्ञा का अनुसरण करने वाले श्रीराममिश्रस्वामी जी की मन्निधि से अनेक शास्त्रों का ज्ञान करके हमने बहुत बार सुने हुये और बहुत अभ्यास किये हुये भगवद् गीता के अर्थ-विस्तार का संग्रह किया है, अतः यह मुमुक्षुजनों द्वारा सावधान होकर संग्रह करने योग्य है। गीताभाष्य में श्रीरामानुजाचार्य स्वामीजी ने गीतार्थसंग्रह के भावों को तन्त्र-तत्र स्पष्टतया दिखाया है। गीता के रहस्यार्थ को विशिष्टाद्वैतसिद्धान्त की दृष्टि से समझने के लिये इससे छोटा और सरल ग्रन्थ नहीं है। उक्त गीतार्थसंग्रह पर श्रीवेदान्तदेशिक स्वामीजी ने गीतार्थसंग्रहरक्षा नाम से बहुत सुन्दर व्याख्या लिखी।
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