Grih Pravesh Paddhati (गृहप्रवेश पद्धतिः)
₹175.00
Author | Acharya Devnarayan Sharma |
Publisher | Shri Kashi Vishwanath Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-93-92989-11-7 |
Pages | 284 |
Cover | Hard Cover |
Size | 18 x 2 x 12 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0260 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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गृहप्रवेश पद्धति: (Grih Pravesh Paddhati) वास्तु का अर्थ– वसने योग्य स्थान, घर बनाने की जगह, भवन भूखण्ड आदि को वास्तु कहा जाता है। शास्त्रों में गृह के लिए ‘वास्तु’ शब्द का प्रयोग किया गया है। संसार में सभी प्राणियों को रहने के लिए घर की आवश्यकता होती है। गृहस्थ का समस्त सुख घर में ही निर्धारित है। अतः गृह-निर्माण के लिए भूमि का विचार, वास्तुशान्तिपूर्वक गृहारम्भ तथा शुभ मुहूर्त्त में गृहप्रवेश करना चाहिए। ऐसे घर में हर प्रकार की सुख शान्ति विद्यमान रहती है। वास्तुराजवल्लभ में लिखा है-
वास्तुपूजामकृत्वा यः प्रविशेन्नवमन्दिरम्। रोगान्नानाविधान् क्लेशानश्नुते बहुसंकटम्।।
अर्थात् वास्तुपूजन किये बिना जो व्यक्ति नये घर में प्रवेश करता है, उस घर में नानाविध रोग, क्लेश तथा अनेक प्रकार के संकटों का सामना गृहस्वामी को करना पड़ता है।
भवन निर्माण के पूर्व भूमि का शोधन आवश्यक होता है। भूमिशोधन प्रक्रिया सूक्ष्म और स्थूल के भेद से दो प्रकार की होती है। सूक्ष्म रीति में अहिबल चक्र के द्वारा जमीन के भीतर हड्डी आदि का विचार किया जाता है और स्थूल रीति में प्रश्नादि के द्वारा जीवित, मृतभूमि, शुद्ध-अशुद्धभूमि विचार के साथ ही जमीन के रूप, रस, गन्ध एवं बनावट (ऊँच, नीच) आदि के द्वारा बाह्य संशोधन होता है। भवन निर्माण में वेध का विचार भी आवश्यक है। वेध सूर्य, चन्द्र, वृक्ष, देवमन्दिर आदि से होता है। गृह के अधिष्ठातृ-देव को वास्तुपुरुष कहा गया है, जिसके स्वरूप का उल्लेख कहीं गिरगिट और कहीं सर्पाकार रूप में मिलता है।
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