Gupt Sadhana Tantra (गुप्तसाधन तन्त्र)
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Author | Ajay Kumar Uttam |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2004 |
ISBN | - |
Pages | 86 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0400 |
Other | मूल एवं 'पदमा' हिन्दी व्याख्यासहितम |
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गुप्तसाधन तन्त्र (Gupt Sadhana Tantra) “तान्त्रिक वाङमय” अत्यन्त ही विशाल है। इस विशाल साहित्य में अनेक ही लघुकाय एवं वृहदाकार ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। इन लघु आकार के ग्रन्थों में से गुप्तसाधन तन्त्र एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह पार्वती एवं शिव के संवाद के रूप में लिखा गया है।
गुप्तसाधन तन्त्र में कुलाचार का प्रतिपादन किया गया है। कहा जाता है कि तन्त्रशास्त्र में अन्य वर्णो की भाँति स्त्री एवं शूद्र का भी समानाधिकार है इस बात का समर्थन यह तन्त्र भी करता है। इस ग्रन्थ में स्त्रीगुरु का महत्त्व एवं कुलीनस्त्रीगुरु का ध्यान भी वर्णित किया गया है। कुलाचारसम्मत पञ्चाङ्ग उपासना, गोपनीय कुलाचार पूजन विधिच का भी इसमें वर्णन है। कालीतन्त्र एवं यामलतन्त्र सम्मल दक्षिणाकाली का कल्प भी इस तन्त्र में बताया गया है। पञ्चमकारों की शुद्धि एवं उनका उपयोग किस प्रकार किया जाए यह इस ग्रन्थ में विस्तारपूर्वक बताया गया है। स्त्रीसाहचर्य के बिना किस भी प्रकार की साधना में सिद्धि असम्भव है यह इस तन्त्र का भी वचन है। कौलमार्ग में वैसे भी नारी का अपना विशिष्ट स्थान है। नारी को शक्ति का स्वरूप माना गया है। कौलमार्ग में स्वकीया अथवा परकीया दोनों ही शक्तियों को महत्त्व दिया गया है किन्तु स्वकीया की अपेक्षा परकीया विशेष मानी गयी है।
इस ग्रन्थ के पटलसंख्या १ से लेकर ५ तक में कुलस्त्री के विषय में लिखा गया है। पटल संख्या ६ में दक्षिणा काली की पूजा विधि की दी गयी है। पटल ७ में पञ्चतत्त्व के स्वरूप का वर्णन एवं माहात्म्य का वर्णन किया गया है। आठवें पटल में सिद्धारिचक्र मणियन्त्रप्रतिमादि के पूजन का तथा पार्थिव शिवलिंग के पूजन के दोष का वर्णन हुआ है। नवम् पटल धनदा रतिप्रिया विद्या के मन्त्र, यन्त्र, पूजनविधि, स्रोत, कवच आदि का वर्णन करता हूँ। दशम पटल मातङ्गीमहाविद्या के मन्त्र, स्तोत्र, कवच तथा उसकी फलश्रुति से सम्बन्धित । एकादश पटल में वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर तथा गाणपत्य मत में प्रयुक्त मालाओं के विषय में लिखा गया है। इस ग्रन्थ के अन्तिम अर्थात् द्वादश पटल में वेदमाता गायत्री का मन्त्रोद्धार, माहात्म्य एवं गुप्तसाधन तन्त्र की फलश्रुति दी गयी है। इस ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थ की श्लोकानुक्रमणिका, दूतीयागविधि एवं कुलाचार विधि परिशिष्ट के रूप में जोड़े गए हैं। इससे पाठकों एवं साथकों को अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा। इस ग्रन्थ में कालीतन्त्र, नीलतन्त्र एंव यामलतन्त्र का वर्णन प्राप्त होता है। अतः इस ग्रन्थ की रचना इन्हीं के बाद की होनी चाहिए।
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