Kalidas Granthavali (कालिदास ग्रन्थावली)
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Author | Bramhanad Tripathi |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-93-80326-19-1 |
Pages | 796 |
Cover | Hard Cover |
Size | 16 x 4 x 25 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SUR0023 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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कालिदास ग्रन्थावली (Kalidas Granthavali) किसी महाकवि की सभी रचनाएँ एक स्थान पर पाठकवृन्द को उपलब्ध हो सकें, इसी पवित्र संकल्प से प्रेरित होकर विद्वानों ने ग्रन्थावली परम्परा का सूत्रपात किया। तदनन्तर यह रुचिकर एवं उपयोगी परम्परा देखते-देखते उभर आयी। इसे हम उस उस कवि के सुयश की जीवातु ही कहेंगे। इसी पवित्र परम्परा का यह अन्यतम सुवासित सुमनस्तबक ‘कालिदास ग्रन्थावली’ भी है।
सुप्रसिद्ध एवं यशस्वी महाकवि कालिदास के ग्रन्थरत्नों की आवली (रत्नहार) से अपने कंठ तथा वक्षःस्थल की सुषमा-वृद्धि कौन सरसहृदय व्यक्ति करना नहीं चाहेगा? उक्त रत्नहार को पिरोना विद्वानों के लिए इसलिए अत्यन्त कठिन हो गया था कि कालिदास की कृतियों के सम्बन्ध में सुधीसमाज एकमत नहीं हो पाया था, क्योंकि समय-समय पर हुए अनेक कालिदास नागधारी विद्वान् उस सुप्रसिद्ध कविशेखर के प्रांशुलभ्य सुयश को प्राप्त करने की इच्छा से कुछ-न-कुछ लिखते गये। उन सबका साहित्य परस्पर होड़ लगाता हुआ सामने आया। ऐसी विषम स्थित में काव्यमर्मज्ञ विद्वानों ने अन्तःसाक्ष्यों के आधार पर जिन काव्य-नाटकों को इनकी अमर एवं अनुपम कृति के रूप में सादर स्वीकार किया है, प्रस्तुत ग्रन्थावली में उन्हीं कृतियों का सादर संग्रह किया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थावली की अधिकाधिक उपादेयता हो, इस दृष्टि से इससे सम्बन्धित जो-जो विषय अपेक्षित समझे गये उन-उन का समावेश यथा सम्भव इसके परिशिष्ट भाग में कर दिया गया है। साथ ही इसके अन्त में पारिभाषिक शब्दकोष भी दे दिया गया है, जिसमें कालिदास की कृतियों में आए हुए व्यक्तियों, प्राणियों, वस्तुओं, नदियो पर्वतों तथा भौगोलिक स्थानों में नामों का सन्दर्भ सहित उल्लेख प्रथम बार प्रस्तुत किया गया है, जिसकी शब्दसंख्या प्रायः एक हजार है । परिशिष्ट के अन्त में ‘कालिदासकालीन भारत का मानचित्र’ भी दे दिया गया है, जिसमें तत्कालीन भारत के स्थानों, देशों पर्वतों तथा नदियों के संकेत दिये गये हैं। प्रत्येक नाटक के आरम्भ में सम्बन्धित पात्र-परिचय भी दिया गया है। हमारे इस प्रयास से पाठकवृन्द को सन्तोष का अनुभव हो, यही इसकी चरितार्थता है।
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