Kashi Ki Kavya Shastriya Acharya Parampra (काशी की काव्यशास्त्रीय आचार्य परम्परा)
₹630.00
Author | Rajesh Sarkar |
Publisher | The Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2021 |
ISBN | 978-81-951790-8-4 |
Pages | 240 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0011 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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काशी की काव्यशास्त्रीय आचार्य परम्परा (Kashi Ki Kavya Shastriya Acharya Parampra) संस्कृति-सभ्यता, धर्म-दर्शन, कला-शिल्प एवं साहित्य के केन्द्र के रूप में काशी सदा से विख्यात रही है। भिन्न-भिन्न कालखण्डों में इसकी गौरव गरिमा के दर्शन न केवल भारतीय साहित्य प्रत्युत् वैदेशिक यात्रियों के विवरण-स्रोतों के माध्यम से भी होते हैं। “काशी” शब्द स्वयं में ही महनीय ज्ञानपरम्परा को द्योतित करती है- ‘काशते प्रकाशते ब्रह्मविद्या यस्यां नगयाँ सा काशी’।
अर्थात् जिस नगरी में ब्रह्मविद्या प्रकाशित हो उसे काशी कहते हैं। भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आकर काशी में निवास कर रहे मनीषियों द्वारा विरचित संस्कृत-साहित्य अपनी प्रामाणिकता के कारण वैश्विक कीर्ति से मण्डित है। संस्कृत वाङ्मय की ऐसी कोई शाखा नहीं है, जो काशी में पुष्पित-पल्लवित न हुयी हो। इसी क्रम में काव्यसर्जना एवं उसकी समालोचना-समीक्षण के प्रति काशी के साहित्याचायों की अभिरुचि कथमपि न्यून नहीं रही है। काव्यशास्त्र के क्षेत्र में काशी का अवदान अखिल भारतीय स्तर पर विख्यात है। अपने प्रौढ़ तार्किक विवेचन तथा गम्भीर समालोचना के कारण काशी का काव्यशास्त्र के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
प्रकृत ग्रन्थ में मध्ययुगीन काव्यशास्त्रीय आचार्य पण्डितराज जगन्नाथ से लेकर साम्प्रतिक आचार्यों तक पचास से अधिक विद्वानों के जीवनवृत्त एवं उनके अवदान उपन्यस्त किये गये हैं। परिशिष्ट भाग में शताधिक काव्यशास्त्री आचार्यों का उल्लेख किया गया है। यह विवरण काव्यशास्त्र के क्षेत्र में काशी के अवदान का निदर्शन मात्र है, जिसमें परिवर्द्धन की सम्भावना सतत बनी हुयी है।
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