Kathopanishad Set of 2 Vols. (कठोपनिषद् 2 भागों में)
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Author | Swami Maheshanad Giri |
Publisher | Dakshinamurty Math Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2003 |
ISBN | - |
Pages | 825 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | dmm0022 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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कठोपनिषद् 2 भागों में (Kathopanishad Set of 2 Vols.) भारतीय साहित्य का उद्गम वेद है। वेद का सिद्धान्त उपनिषदों में प्रतिपादित है। अतः सभी भारतीय सम्प्रदायों ने अपनी विचार- घारा को उपनिषद् में ढूँढने का प्रयत्न किया है। अद्वत सिद्धान्त के आचार्यों ने उपनिषद् को ही अपना मूल ग्रंथ स्वीकार किया एवं उसमें प्रतिपादित सिद्धान्त को ही अपना सिद्धान्त स्वीकार किया है, अतः उन्हें उपनिषदों में अपने सिद्धान्त ढूंढने की आवश्यकता नहीं पड़ी। उन्होंने अधिक प्रयास उपनिषदों मैं प्रतिपादित सिद्धान्त को प्रत्यक्ष तथा अनुमान के अविरुद्ध सिद्ध करने का किया है। इसी कारण वेदान्त या औपनिषद् सिद्धान्त नाम से अद्वैत हो समझा जाता है। श्री बादरायण ने ब्रह्मसूत्रों में उपनिषदों का समन्वय प्रस्तुत किया है जिस पर शांकरभाष्य अद्वैत को प्रस्फुटित करता है। परन्तु ब्रह्मसूत्रों में केवल विवादास्पद स्थलों पर ही विचार किया गया है।
अतः श्री भाष्यकार के अनुयायियों ने सभी वैदिक उपनिषदों पर स्वतंत्र ग्रंथ निर्माण किये जिनमें प्रधान दश पर तो स्वयं शंकरभगवत्पाद ने ही भाष्य का निर्माण किया। इन्हीं में से कठोपनिषद् भी है। हमने भाष्य, आनंदगिरि टीका, गोपालेन्द्र टीका, शंकरानंदी दीपिका, विद्यारण्य दीपिका, नारायण दीपिका आदि सभी का आधार लेकर वर्तमान विवेचन प्रस्तुत किया है। अनेक तत्त्वों को समझाने के लिये प्रस्तुत वैदेशिक दार्शनिकों पर तथा विज्ञान पर भी विचार किया है जिसे प्रायः पूर्व पक्ष रूप से उपस्थित करके उनका उत्तर भी बताया है; व कहीं-कहीं वेदान्तानुकूल स्थलों को तत् सिद्धान्तानुयायी होने पर स्वोकार भी किया है। इस प्रकार का विवेचन संभवतः प्रथम बार ही, हिन्दी ही नहीं किसी भी भाषा में, उपस्थित है। आशा है, विद्वान् विचारक इन संकेतित तत्त्वों पर अधिक विचार करके, अन्य रहस्यमय गुह्य भागों पर नवीन प्रकाश डालने वाले ग्रन्थों का निर्माण करके वेदान्त को आधुनिक भाषा व परिवेश में उपस्थित करने का प्रयत्न करेंगे।
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