Laghu Jatakam (लघुजातकम)
₹75.00
Author | Dr. Krishan Kumar Pandey |
Publisher | Shiv Sanskrit Sansthan Varanasi |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2015 |
ISBN | - |
Pages | 136 |
Cover | Paper Back |
Size | 11 x 1 x 13 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSSV0006 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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लघुजातकम (Laghu Jatakam) वर्तमान काल में जिन आचार्यों के ग्रन्य प्राप्त होते हैं, उनमें आर्यभट्ट, भास्कर, वराह सर्वप्रमुख हैं। ज्योतिषशास्त्र के उद्धारक त्रिकन्ध ज्योतिषग्रन्य प्रणेता आचार्यों में आचार्य वराहमिहिर का स्थान प्रथम नाम क्रमांक पर लिया जाता है। गुप्तकाल में ज्योतिषशास्त्र का वैभव देदीप्यमान था ऐसा वराह के ग्रन्थों के आधार पर कहा जा सकता है। आचार्य वराह का काल ईशवीय सन् ५०५ माना जाता है। वराह ने सिद्धान्त, संहिता व होरा के मुख्य ग्रन्थों में पञ्चसिद्धान्तिका, बृहत्संहिता व बृहजातकम्-लघुजातकम् ग्रन्थ की रचना की जो अति प्रसिद्ध है। होरा-जातक शास्त्र का ग्रंथ बृहज्जातकम् है। इसका सार स्वरूप ‘लघुजातकम्’ में उपलब्ध होता है। वराह के सभी ग्रन्थों पर प्रामाणिक टीका के रूप में ‘भट्टोत्पल टीका’ सर्वमान्य है।
इस ग्रन्थ में कुल सोलह अध्याय है। इसका अध्ययन करने व बारम्बार स्वाध्याय करने से अनेकानेक रहस्यमय ज्ञान प्रकाश का आविर्भाव होता है। इस लघु ग्रन्य के कलेवर में राशिप्रभेद, ग्रह प्रभेद, ग्रहमैत्री, ग्रहस्वरूप, आधान, सूतिका, अरिष्ट, अरिष्ट भंग, आयुर्दाय, दशान्तर्दशा, अष्टकवर्ग, प्रकीर्ण (राशिशील, योग), नाभसयोग, स्त्री जातक, निर्याण एवं नष्टजातक अध्याय के रूप में कुल सोलह अध्याय हैं। ऐसा लगता है जैसे गागर में सागर समाया है। जातकशास्त्र के सभी महत्त्वपूर्ण विषय इस छोटे ग्रन्थ में उपलब्ध है। अध्ययन काल से ही यह ग्रन्थ मुझे अत्यन्त प्रभावित करता रहा। आज भी इसके स्वाध्याय से ज्योतिष के ज्ञान तरंगों की नयी नयी रहस्यमय सम्बन्ध अभिव्यक्त होते रहते हैं। आद्योपान्त इसकी भट्टोत्पल टीका के साथ सरल हिन्दी व्याख्या जो छात्रोपयोगी हो एवं सुगमता से अवगम्य हो करने की इच्छा छात्रावस्था से थी। अतः विशेष स्मरणीय तथ्यों से सुसज्जित ग्रंथ जिज्ञासुओं, विद्वानों एवं छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते हुये हर्ष की अनुभूति हो रही है।
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