Mandan Mimansa (मण्डन मीमांसा)
₹625.00
Author | Pankaj Kumar Mishra |
Publisher | Vidyanidhi Prakashan, Delhi |
Language | Hindi |
Edition | 2021 |
ISBN | 978-9385539961 |
Pages | 224 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VN0013 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मण्डन मीमांसा (Mandan Mimansa) प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रणेता डॉ० पंकज कुमार मिश्र संस्कृतजगत् के लब्धप्रतिष्ठ हस्ताक्षर है। प्रायः 27 वर्षों से अध्यापनरत ये अपनी प्रतिभा से न केवल समीक्षासंसार को समृद्ध कर रहे प्रत्युत पारम्परिक ग्रन्थि को भी सुलझाने का सफल प्रयास कर रहे हैं।
दर्शन, साहित्य, इतिहास, संस्कृति, भाषा- विज्ञान, अभिलेखशास्त्र प्रभृति विषयों के चिन्तक इन्होंने इससे पूर्व तर्कसंग्रह, शाकुन्तलविषयक रम्यत्व की अवधारणा, तर्कभाषा, वैशेषिक एवं जैन तत्त्वमीमांसा में द्रव्य का स्वरूप, सर्वदर्शनसङ्ग्रह एवं शंकरदर्शन, वैशेषिक एवं बौद्धों की प्रमाण मीमांसा, प्रमाणमञ्जरी, चार्वाक तथा मण्डन-ग्रन्थावली नामक विवेचकविश्लेष्य ग्रन्थों का प्रणयन किया। प्रस्तुत ग्रन्थ भी इसी सरणि का एक चरण है।
आन्ताराष्ट्रिय एवं राष्ट्रिय शोधसम्मेलनों में इनकी समुपस्थिति इनकी बौद्धिक उन्मुखता का अभिज्ञान है। यू०जी०सी० द्वारा समायोजित विविध विषयों पर इनके MOOC व्याख्यानों से श्रोतृसमवाय सर्वदा लाभान्वित हो रहे हैं। सार्द्धशताधिक शोधपत्रों की प्रस्तुति तथा विंशत्यधिक शोध-आलेखों का प्रकाशन इनकी गहन अध्यवसायिता के द्योतक हैं।
दिल्ली, जामिया मिल्लिया, श्रीमाता वैष्णोदेवी तथा एमिटी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम निर्माण एवं NCERT तथा कतिपय राज्यों के माध्यमिक विद्यालयों के पुस्तक निर्माण में इनकी महती भूमिका रही है। अभिनय एवं रङ्गमञ्च इनकी अभिरुचियाँ रही हैं। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से प्रसारित धारावाहिक, परिचर्चा, नाटक आदि इनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा के सङ्केतक हैं। विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की विभिन्न समितियों से जुड़ा होना इनके प्रशासनिक व्यक्तित्व का सम्मान है।
भारतीय दर्शन-चिन्तन परम्परा में आचार्य मण्डन मिश्र का स्थान सर्वथा सम्माननीय एवं श्लाघनीय है। शंकरप्राक् वेदान्त के वे प्रथम आचार्य हैं जिन्होंने अन्य ज्ञेय विषयों को भी अपने चिन्तन का आधार बनाया। शंकर के पश्चात् अद्वैत के जिन दो प्रस्थानों (भामती एवं विवरण) का उद्भव हुआ उनमें भामती प्रस्थान का स्रोत या उपजीव्य कदाचित् मण्डन ही थे।
विद्वत्समीक्षणपरम्परा में अल्पपरिचर्चित होने पर भी शास्त्रीयविमर्श में इनका सर्वथा उल्लेख प्राप्त होता है। उनके इसी ज्ञान वैभव के सार को शब्द देकर उस ज्ञान के प्रसारण तथा उनके विषय में चतुर्दिक् व्याप्त भ्रान्तिजन्य ज्ञान के अपसारण के लिए प्रस्तुत विचारस्तबक का सोद्देश्य प्रणयन किया गया है।
मण्डन-मीमांसा नाम से पाणिप्रसूनवत् अधिगत यह ग्रन्थ अध्येतृजनों के विचारार्थ प्रस्तुत है। आचार्य के ग्रन्थों और प्रतिपाद्यों को आधार बनाकर इससे पूर्व कतिपय ढेर ग्रन्थ प्रकाशित हैं। इनके ग्रन्थों के ऊपर समधिक शोध एवं स्वतन्त्र कार्य भी हुए हैं और हो रहे हैं। पुनरपि, नये चिन्तन के साथ इसी परम्परा में एक और प्रतिदान का मेरा यह प्रयास है। इससे पूर्व प्रकाशित मेरे ग्रन्थ मण्डन-ग्रन्थावली की प्रसिद्धि ने इसके रूपान्तरण की प्रेरणा दी। कई मित्रों ने इस ग्रन्थ की पृथुलता तथा मूल्य की दृष्टि से दुर्लभ्य होने के कारण सर्वगत होने में शंका प्रकट की। यही कारण है कि इसके लघु रूप को संपादित कर प्रस्तुत करने के लिए उत्प्रेरित हुआ।”
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