Sanskrit Vyakaran Praveshika (संस्कृत व्याकरण प्रवेशिका)
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Author | Prof. Ramesh Bharadwaj, Dr. Shri Vats Shastri |
Publisher | Vidyanidhi Prakashan, Delhi |
Language | Hindi |
Edition | 2019 |
ISBN | 978-9385539558 |
Pages | 254 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VN0014 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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संस्कृत व्याकरण प्रवेशिका ईश्वरचन्द्र विद्यासागर प्रणीत संस्कृत व्याकरण की उपक्रमणिका का संवर्धित संस्करण (Sanskrit Vyakaran Praveshika) संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्तकर सुसंस्कृत बनने की विद्यार्थियों की ललक की परिपूर्ति हेतु पंडित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर द्वारा विगत सदी में प्रणीत ‘संस्कृत व्याकरण की उपक्रमणिका’ नामक पुस्तिका ने महती भूमिका का निर्वाह किया था। इसमें समाहित सामग्री आज भी बहुत उपयोगी प्रतीत हो रही हैं।
अद्यतन समाज में संस्कृत भाषा के प्रामाणिक ज्ञान का, संस्कृत के विद्यालय-महाविद्यालयों के नवस्नातकों में, अभाव परिदृष्ट हो रहा है। यह सर्वविश्रुत है कि संस्कृतभाषा का प्रामाणिक ज्ञान व्याकरण के ज्ञान के बिना सम्भव नहीं है। नव्यव्याकरण की कौमुदीपरम्परा से दिये जाने वाले आधुनिक शिक्षण में सामान्यतः विद्यार्थिगण सूत्र-वृत्ति-उदाहरण की रटनप्रक्रिया में इतना उलझ जाते हैं कि मूल उद्देश्य तक पहुंच नहीं पाते।
अनेक दशकों तक अध्यापन करते हुए छात्रों की इस व्यथा का समाधान खोजत-खोजते पंडित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर प्रणीत ‘संस्कृत व्याकरण की उमक्रमणिका’ नामक यह पुस्तक दृष्टिगोचर हुई। इस पुस्तक की सुगमता ने विगत सदी में असंख्य विद्यार्थियों को संस्कृत व्याकरण के प्रारम्भिक ज्ञानप्राप्ति के लिए प्रेरित किया है।
हमारे संस्कृत संकाय के आचार्यों को लगा कि इस पुस्तक को न केवल संस्कृतभाषा के प्रारम्भिक ज्ञान के इच्छुक छात्रों के लिए अपितु स्नातकस्तर तक के विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी बनाने का प्रयास किया जाए। इस चिन्तन प्रक्रिया में यह विचार भी उपस्थित हुआ कि क्यों न इसे एक संवर्धित और परिष्कृत संस्करण के रूप में प्रस्तुत किया जाय, जिसमें अन्य उपयोगी सामग्री भी सम्मिलित हो। अन्ततः इसी संकल्प का परिणाम है कि यह कार्य ‘संस्कृत व्याकरण प्रवेशिका’ के रूप में प्रस्तुत हो पाया है।
प्रथमतः लेखन की तुलना में संपादन-संवर्धन का कार्य अधिक दुष्कर है और दूसरे, पंडित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के तपोभूत पुण्य से प्रादुर्भूत इस लघुपुस्तिका के साथ जुड़ने का सौभाग्य-इन दो कारणों से पूर्वोक्त छात्रों के वर्गद्वय के हित हेतु उक्त उपक्रमणिका के संवर्धन का अनुष्ठान प्रारम्भ हुआ। संकाय ने स्नातक/स्नातकोत्तर के छात्रों के पाठ्यक्रम को दृष्टि में रखकर पादटिप्पण में पाणिनि-व्याकरण के सम्बद्ध सूत्रों का निर्देश भी किया है। मूल पुस्तक में सुगमतापूर्वक व्याकरण के नियमों को आत्मसात् करते हुए विद्यार्थी परीक्षा में आवश्यक सूत्र-निर्देश उपयुक्त संदर्भ में दे सकें-यही इस उपक्रम को उद्दिष्ट है।
इसके अतिरिक्त, भाषा में प्रावीण्य प्राप्ति के इच्छुक छात्रों के लिए अनेक प्रकार के परिशिष्ट दिये गये हैं, जिनकी सहायता से न केवल भाषाज्ञान का संवर्धन होगा, अपितु ये बी.ए., एम.ए. के परीक्षार्थियों के लिए भी बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। हमें पूरा विश्वास है कि संस्कृत व्याकरण का सरलतम विधि से ज्ञान प्राप्त करवाने में यह पुस्तक उपयोगी भूमिका का निर्वहण करेगी।”
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