Mansagari (मानसागरी)
₹225.00
Author | Pt. Sitaram Jha |
Publisher | Savitri Thakur Prakashan, Varanasi |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | - |
Pages | 496 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0142 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मानसागरी (Mansagari) इस जन्म पत्र लेखन पद्धति (मानसागरी) के नाम से ज्ञातं है कि इसके संग्रह कर्ता का नाम “मान सागर” था इसलिये वे स्वयं अन्य लेखकों ने इस पद्धति का “मान सागरी” नाम करण किया इसके रचना काल अनुमानतः विक्रम १६वीं शताब्दी सिद्ध होता है। जब सवर्ण हिन्दूधर्म के विरोधी किसी मुसलमान शासक ने हिन्दू धर्मग्रन्थों को ढूंढ-ढूंढकर जला दिया और फलित ज्यौतिष की आर्षपद्धतियों में अनर्थकारक परिवर्तन करके अपने मत का प्रचार कराया, उस समय में बहुत से हिन्दुओं ने प्रलोभन में पड़कर तथा बहुत से विवश होकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिये। उस समय में यहाँ के प्रसिद्ध दैवज्ञ (ज्योतिषी) श्रीपति, नीलकण्ठ आदि ने जन्मपत्र, यात्रा, विवाहादि। (अष्टफल) कार्यों में भी फलित विभागोक्त आर्षपद्धति को छोड़कर सिद्धान्त ग्रन्थ प्रतिपादित दृष्टफलार्थ ‘लग्न साधन विधि’ से ही अपने कुतर्क द्वारा लग्नादि द्वादश भावों की साधन पद्धति बनाई। जिसका खण्डन उस समय के ज्यौतिष तत्त्वज्ञ भट्ट कमलाकर आदि विज्ञ जनों ने किया।
इस बात को थोड़ा भी ग्रह गोल के ज्ञान रखने वाले सिद्धान्त ज्यौतिष के प्रारम्भिक विद्यार्थी भी जानते, और जान सकते हैं कि जन्म, यात्रा, विवाहादि में जो शारीरिक पारिवारकि या आर्थिक भूत, वर्तमान या भविष्य अदृष्ट फल आर्ष ज्यौतिष ग्रन्थों में कहा गया है वह लग्नादि तनु-धन-सहोदर- भ्राता आदि नाम से द्वादश भाव माने गये हैं। जो भूकेन्द्रिय (सार्वजनिक स्थानीय) तुल्य राश्युदय मान से सिद्ध होते हैं। नक्षत्र विम्वीयराशियों के द्वारा सिद्ध होते हैं। जिनके आकाश में प्रत्यक्ष मेष-वृष आदि सदृश आकार देखने में आते हैं, इसलिये समस्त जातक ग्रन्थों में उन राशियों से रूप-वर्ण आदि वर्णित हैं। जिनका साधन पराशरादि प्रणीत जातक ग्रन्थों में दिखलाया गया है।
सिद्धान्त ग्रन्थों में तो क्रान्तिवृत्तीय रेखारूप राशियों के अपने-अपने स्थानीय राश्युदयों से लग्न साधन क्रिया दिखलाई गई हैं। यदि सिद्धान्त प्रणेता महर्षियों या आचार्यों का वह लग्न अदृष्ट फलार्थ भी अभिप्रेत रहता तो सिद्धान्त ग्रन्थों में सब भावों की साधन विधि भी आज कल अधिकांश जन्मपत्र में फल लिखनेवाले इसी (मानसागरी) से जन्मपत्र में फल लिखते हैं। यह अनेक स्थानों से प्रकाशित भी हो चुकी है किन्तु उसमें कुछ त्रुटियों को देखकर हमने इसके प्रत्येक मूलश्लोकों को शुद्ध करके सबका सोदाहरण, सोपपत्ति, भाषार्थ लिख दिया है तथा इसमें लग्र साधन विधि जन्मपत्र के विरुद्ध होने पर भी उसको नहीं हटाकर तदनुसार ही अर्थ और उदाहरण लिख दिया है।
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