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Mantra Raj Prakash (मंत्रराजप्रकाश कैवल्योपनिषद् व्याख्या तथा अष्टादशश्लोकी गीता)

20.00

Author Maheshanand Giri
Publisher Dakshinamurty Math Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2017
ISBN -
Pages 32
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code dmm0075
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Description

मंत्रराजप्रकाश (Mantra Raj Prakash)

नत्त्वा पंचाक्षरीं विद्यां निर्मलां मुक्तिदां शिवाम् ।
पद्मपादस्य व्याख्यानं कथ्यते लोकभाषया ।। १ ।।

समग्र विश्व वैदिक धर्म से ही अपने आपको सुखी व समृद्ध बना सकता है। भगवान् शिव एवं भगवती पार्वती किसी देश, काल में प्रकट नहीं होते अतः ब्रह्माण्ड भर उनमें तादात्म्यानुभव कर पाते हैं। ‘रुद्रो नर, उमा नारी’ आदि शास्त्र इसमें प्रमाण हैं। सारे भूमण्डल में शिवलिङ्गपूजा के अवशेष मिले हैं। भारत में मोहन्जोदडो में जो प्राचीनतम पदार्थ मिले हैं उनमें शिव की मूर्ति पद्मासन में, पशुपति रूप में तथा पार्वती की मूर्ति उत्थितासन में, मातृरूप में, योनिरूप में व त्रिकोण रूप में मिली हैं। वैदिक यज्ञ में वेदि ही योनि है तथा अग्नि ही ऊर्ध्वलिंग है। ज्ञान में मन ही त्रिशक्तिरूप होने से योनि है तथा ब्रह्माभास ही ज्ञापक होने से लिंग है। भक्ति में जीव ही योनि है तथा शिव ही उसमें स्थित लिंग है। इसी प्रकार पृथ्वी ही योनि है तथा सूर्य ही लिंग है। न जाने क्यों अनेक भारतीय भाषाओं में, विशेषतः हिन्दी में, ये दोनों शब्द केवल दैहिक अंगविशेषों में रूढ हो गये हैं। इस रूढि से हमारे शास्त्रों तथा पूज्य पदार्थों के घृणित अर्थ कुछ अर्धनास्तिक वैष्णवों ने किये एवं आंग्लों ने उन्हीं अर्थों को ईसायियत के कारण परिवृद्ध व प्रसारित किया। आशा है संस्कृतज्ञ हिन्दी भाषा वाले इस भ्रम को दूर करेंगे।

आचार्य शंकर ने वैदिक धर्म के उद्धार में जिन अस्त्रों की सहायता ली उनमें लोकसामान्य में सरलता से सिद्धान्त और क्रिया का प्रचार भी प्रधान था। दार्शनिकों के लिये उपनिषदों में से जैसे महावाक्य का उद्धार उन्होंने किया, वैसे ही संहिता में से सारभूत पंचाक्षरी मंत्रराज का उपदेश साधकों को उन्हींने दिया। मंत्रराज में प्राणिमात्र का अधिकार सूत संहिता आदि में स्पष्ट विहित है। यह सभी के उद्धार का सर्वोत्तम सरलतम मार्ग है। इसमें दीक्षा बिना भी जप का अधिकार इसे सहज सिद्ध करता है। इसके भाव को प्रकट करने के लिये शंकर भगवत्पाद के पट्ट शिष्य ब्रह्मसूत्रभाष्य के प्रामाणिक व्याख्याता भगवान् पद्मपाद ने जिस ग्रंथ की रचना की उसके अध्ययन से वेदान्त का सारा रहस्य तथा भक्ति व कर्म का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। अतः इसका हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है।

पंचाक्षरी के प्रतिपाद्य शिव का स्वरूप और उन्हे पाने के उपाय कैवल्य उपनिषद् में अत्यन्त स्पष्ट और सरल ढंग से कहे गये हैं। इस उपनिषत् का संक्षिप्त व्याख्यान भी उपस्थित कर रहे हैं जिससे मूल का शब्दार्थ व्यक्त हो। किसी व्याख्याता ने मंत्रराजप्रकाश में ब्रह्मसूत्रों के तात्पर्य का प्रकाशन माना है, तदनुसार इस संग्रह में स्मार्त प्रस्थान का भी दिग्दर्शन अष्टादशश्लोकी गीता से करा दिया गया है। इन ग्रन्थों का मनन अवश्य पुरुषार्थसिद्धि प्रदान करता है।

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