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Mudgal Puranam Part-2 (मुद्‍गल पुराणम् भाग-2)

1,488.00

Author Prof. Dalveer Singh Chauhan
Publisher Chaukhamba Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2023
ISBN -
Pages 713
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CH0033
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Description

मुद्‍गल पुराणम् भाग-2 (Mudgal Puranam Part-2) मुद्‍गल पुराण ९ खण्डों में लिखा गया एक विशाल पुराण है। यह भी अन्य पुराणों की भांति सूतजी द्वारा वर्णित है।इस पुराण का प्रथम भाग प्रकाशित हो चुका है, जिसमें प्रथम खण्ड और द्वितीय खण्ड के वर्ण्य विषय प्रस्तुत कर दिये गये हैं। इसके प्रथम खण्ड के प्रथम अध्याय का प्रारम्भ शौनक और सूत संवाद से होता है। बताया गया है कि कलियुग के प्रभाव से त्रस्त शौनकादि ऋषिगण नैमिषारण्य में जाकर रहने लगे थे; क्योंकि वहाँ पर कलियुग का प्रभाव नहीं था। वहाँ उनको यज्ञादि कार्य करने की सुविधा थी। वहाँ परिभ्रमण करते हुए महर्षि वेदव्यास के शिष्य रोमहर्षण सूत जी पहुँचते हैं तो वहाँ पर उपस्थित सब शौनक आदि ऋषियों और ब्राह्मणों ने पूछा कि हम सबने पुराणों का अध्ययन किया है तो आजतक समझ नहीं पाये कि कौन सबसे शक्तिशाली देव हैं। इस पर सूतजी ने कहा कि श्रीगणेश ही सब कुछ हैं। वे ही इस संसार के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता है तथा वे ही शक्ति और सूर्य के संचालक हैं।

इस प्रकार समस्त पुराण के ९ खण्डों में केवल यही वर्णन है कि सृष्टि रचना से लेकर आजतक जितने राजे-महाराजे और ऋषि, मुनियों को सफलता के बाद असफलता का मुँह देखना पड़ा तो श्रीगणेश को भूल जाने के कारण हुआ है तथा इसके साथ-साथ श्रीगणेश को पूर्णब्रह्म भी सिद्ध किया गया है और निराकार, सर्वज्ञ, सर्वत्र व्यापक और पूर्णब्रह्म माने गये हैं, तब तो यह मानना ही पड़ेगा कि मनुष्य जब भी उस परमपिता परमेश्वर पूर्णब्रह्म को भूल जायेगा और सबकुछ स्वयं को समझकर कार्य करेगा तो यह घमण्ड ही कहा जायेगा। इसे ही तो दूसरे शब्दों में अहंकार कहेंगे। अर्थात् जब मानव यह समझ लेगा कि सब कुछ करने वाला मैं ही हूँ, तब तो उसका अहंकार मिटाने के लिये वह निराकार ब्रह्म अवश्य ही उसके उस अहंकार का नाश करेगा। यही तो इस पुराण में विशद वर्णन है; क्योंकि श्रीगणेश पूर्णब्रह्म हैं। वे ही परमात्मा हैं और परमात्मा का अंश सब आत्मायें अर्थात् समस्त चारों प्रकार के प्राणी १. जार से पैदा होने वाले मनुष्य, पशु आदि, २. अण्डे से पैदा होने वाले पक्षी, मगरमच्छ आदि तथा ३. पसीने तथा कीचड़ आदि से पैदा होने वाले मच्छर, डींगर आदि और ४. जमीन फोड़कर पैदा होने वाले वृक्ष, लता आदि सभी तो उन्हीं के अंश हैं। उन्हीं की कृपा से अस्तित्व में हैं, जिनमें मनुष्य सबसे विकसित जीव है। उसे उस सत्ता ने कुछ कार्य देकर भेजा है। उसी के अनुसार वह राजा, मंत्री, न्यायाधीश, डॉक्टर, शिक्षक आदि बनता है; परन्तु जब वह व्यक्ति अपने दायित्व को भूल जाता है और प्रकृति के विरुद्ध कार्य करने लगता है, सबकुछ मैं ही हूँ, यह समझकर कार्य में प्रवृत्त होता है तो फिर वह पूर्णब्रह्म परमात्मा उसके उसके अहंकार को मिटा देता है, ऐसा ही तो इस पुराण में सर्वत्र वर्णित है।

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