Mudgal Puranam Part-5 (मुद्गल पुराणम् भाग-5)
₹1,062.00
Author | Prof. Dalveer Shingh Chauhan |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2023 |
ISBN | - |
Pages | 364 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0387 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मुद्गल पुराणम् भाग-5 (Mudgal Puranam Part-5) पुराण तो बहुत इस भारत भूमि पर प्राप्त हो रहे हैं, जिनका लेखक महर्षि वेदव्यास को ही माना गया है; परन्तु वास्तविकता कुछ और ही है। पुराणों के लेखक महर्षि वेदव्यास नहीं हैं। इनके लेखक एक विशेष वर्ग के व्यक्ति हैं, जिन्होंने सर्वत्र अपनी ही प्रशंसा की है तथा काल्पनिक कथाओं से पुराणों को भर दिया है तथा यह कैसी विडम्बना है कि सभी पुराण कुछ अन्तर से एक समान कथाओं का वर्णन करते दृष्टिगोचर होते हैं। कल्पनाओं की उड़ान तो सर्वत्र आकाश चूमती हुई दृष्टिगोचर हो रही है तथा कथायें भी ऐसी विचित्र हैं, जिनमें विश्वास करना कठिन-सा प्रतीत होता है तथा कथाओं में प्रकृति के मूल तत्त्व ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति, सूर्य आदि का मानवीय करण कर मानव मस्तिष्क को भ्रमित कर दिया है तथा सब पुराण अपने ही देवता की प्रशंसा करते हुए नजर आते हैं। यदि निष्पक्ष रूप से सोचा जाये तो इनकी कथायें तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं। प्रकृति के निराकार निर्गुण तत्त्वों के मानवीयकरण ने समाज को दिग्भ्रमित कर दिया है। यदि मानवीयकरण किया है तो बताना चाहिये था कि इनका रहस्य क्या है। अन्य को तो छोड़िये, श्रीगणेश जो निराकार ब्रह्म हैं, उनको हाथी का मुख और मनुष्य का शरीर बना दिया और यह कथा बना डाली कि श्रीगणेश तो पार्वती के मैल से पैदा किये गये और शंकर जी ने जब उनका शिर काट दिया तो फिर हाथी का शिर जोड़ दिया गया। पता नहीं, इन पुराण लेखकों ने यह नहीं सोचा होगा कि ऐसा भी हो सकता है, क्या यह सम्भव है? वे जानते थे; परन्तु रहस्य को छिपा दिया। तब बहुत दिनों के बाद मुद्गल पुराण ने इन परम ब्रह्म श्री गणेश के सम्पूर्ण रहस्य का उद्घाटन किया, तब उनके सभी रूपों का प्रतीकात्मक स्वरूप सामने आया। अतः यह पुराण वास्तव में एक अपने तरह का अनूठा पुराण है। इस पुराण में श्रीगणेश के नाम और उनके साकार रूप का पूरी तरह वर्णन कर दिया है। वैसे तो इसके पूर्व भागों में मैंने प्रकाश डाला है; तदपि संक्षेप में देना उचित समझता हूँ। विशेष के लिये इस पुराण के प्रथम भाग को पढ़िये।
श्रीगणेश नाम का रहस्य वेदान्त का वाक्य है “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” अर्थात् इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ जड़-चेतन पदार्थ हैं, वे ब्रह्म हैं। अतः ये सब गण (समूह) हुए। अतः इन सब ब्रह्मों के ईश गण + ईश = गणेश हैं, इन्हें ही ब्रह्मेश भी कहा गया है।
इस पुराण के अध्याय-४१ में मुद्गल मुनि ने गण शब्द का एक स्थल पर वर्णन किया है। ‘ग’ वर्ण और ‘ण’ वर्ण से गण शब्द बना है, अतः ‘ग’ वर्ण सगुण ब्रह्म का प्रतीक है तथा ‘ण’ वर्ण निर्गुण ब्रह्म का प्रतीक है। व्यवहार में भी देखिये ‘ग’ वर्ण से शब्द बनते हैं। ‘ण’ से कोई शब्द नहीं बनता; क्योंकि णकार पूर्व से कोई शब्द नहीं होता। अतः वे श्रीगणेश सगुण और निर्गुण दोनों रूप वाले हैं। सगुण का अर्थ यह नहीं कि वे साकार हैं, उनका आकार नहीं है; परन्तु ईश्वर अंश जीव अविनाशी के अनुसार जब वे अपने अंशों से प्राणियों में स्थित हैं तो सब प्राणी उनके ही रूप हैं अतः साकार हैं तथा निर्गुण तो वे हैं ही। इससे सिद्ध हुआ कि श्रीगणेश पूर्ण ब्रह्म हैं।
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