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Niruktam (निरुक्तम् 1-7 अध्यायः)

319.00

Author Dr. Jamuna Pathak
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2022
ISBN 978-81-7080-338-6
Pages 551
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0762
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Description

निरुक्तम् 1-7 अध्यायः (Niruktam) निरुक्त का वेदाङ्गों में महनीय स्थान है। वैदिक मन्त्रों के सम्यगवबोध और अभीष्टार्थ-निर्धारण के लिए निरुक्त अत्यन्त उपयोगी है। निरुक्त वैदिक शब्दकोश के रूप में सङ्कलित निघण्टु में पठित वैदिक पदों का व्याख्यान है। वेदाङ्गों में निरुक्त का महनीय स्थान है। वैदिक मन्त्रों के सम्यगवबोध तथा वैदिक मन्त्रों के देवताओं के ज्ञान के लिए निरुक्त का अध्ययन अत्यन्त उपयोगी है। इस ग्रन्थ निघण्टु में सङ्‌गृहीत कठिन वैदिक पदों की निर्वचनपूर्वक व्याख्या की गयी है जिससे यह ग्रन्थ वेदमन्त्रों के अभीष्टार्थ निर्धारण में अत्यधिक सहायक है। सम्प्रति यास्ककृत निरुक्त ही उपलब्ध है। इस निरुक्त के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि यास्क के पहले भी निघण्टु की व्याख्या के रूप में अन्य निरुक्तकारों द्वारा निरुक्त की रचना की गयी थी। यास्क ने अपने निरुक्त में पूर्ववर्ती बारह निरुक्तकारों के नाम और मत्तों का स्थल-स्थल पर उद्धरण दिया है। वे हैं-

(१) अग्रायण, (२) औपमन्यव, (३) औदुम्बरायण, (४) और्णवाभ, (५) कात्थक्य, (६) क्रौष्टुकी, (७) गार्ग्य, (८) गालव, (९) तैटीकि, (१०) वार्ष्यायणि, (११) शाकपूणि, (१२) स्थौलाठीवि। तेरहवें निरुक्तकार स्वयं यास्क हैं।दुर्गाचार्य ने अपनी दुर्गवृत्ति में निरुक्त की संख्या १४ बतलाया है- ‘निरुक्तं चतुर्दश प्रभेदम्’ (दुर्गवृत्ति १.१३) । किन्तु इस चौदहवें निरुक्तकार का नाम ठीक-ठीक ज्ञात नहीं होता; क्योंकि यास्क ने अपने निरुक्त में इन बारह आचार्यों के अतिरिक्त कौत्स, चर्मशिरा, परुच्छेप, भारद्वाज, भूतांशकाश्यप, शतवलाक्ष मौद्गल्य, शाकटायन, शाकपूणि के पुत्र और शाकल्य-इन ९ आचार्य के नामों का निर्देश और उनके मतों का उल्लेख किया है। इनमें से कौन-सा निरुक्तकार है जो दुर्गाचार्य को चौदहवाँ निरुक्तकार के रूप में मान्य था-यह स्पष्ट नहीं हो पाता।

निरुक्त का स्वरूप – निरुक्त तीन काण्डों में विभक्त है- (१) नैघण्टुककाण्ड, (२) नैगम अथवा ऐकपदिक काण्ड और (३) दैवतकाण्ड। इन तीनों काण्डों में यास्क ने निघण्टु के क्रमशः नैघण्टुककाण्ड, नैगमकाण्ड और दैवतकाण्ड में पठित वैदिक पदों की व्याख्या किया है। निरुक्त बारह अध्यायों में विभक्त है और अन्त में दो अध्याय निरुक्त के परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध है। इस प्रकार निरुक्त में कुल चौदह अध्याय हैं। कपिपय आचार्य परिशिष्टरूप तेरहवें और चौदहवें अध्याय को एक में मानकर निरुक्त में तेरह अध्यायों की ही गणना करते हैं किन्तु यह युक्ति-सङ्गत नहीं हैं; क्योंकि इन दोनों अध्यायों के वर्ण्यविषय अलग-अलग हैं। इसके प्रत्येक अध्याय पादों में विभक्त हैं, किन्तु तेरहवें और चौदहवें अध्याय में पाद विभाजन नहीं है।

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