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Pali Sahitya Ka Itihas (पालि साहित्य का इतिहास)

59.00

Author Bikshu Dharma Rakshit
Publisher Gyanmandal Limited
Language Hindi & Sanskrit
Edition 1979
ISBN -
Pages 213
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code GM0009
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Description

पालि साहित्य का इतिहास (Pali Sahitya Ka Itihas) पालि भाषा हमारे देशकी प्राचीन भाषा है। यह एक दीर्घकालतक राज्यभाषाके रूपमें भी गौरवान्वित रही है। भगवान् बुद्धके समय यह सम्पूर्ण उत्तर भारतकी लोकभाषा थी। भगवान् बुद्धने इसी भाषार्मे उपदेश दिए थे। अशोकके समयमें इसकी बहुत उन्नति हुई। उस समय इसका प्रचार भी विभिन्न बाह्य देशों में हुआ। अशोकके सभी लेख पालि भाषामें ही हैं। भारतमे बौद्धधर्मके हासके साथ ही पालि भाषासे हमारा सम्बन्ध दूर होने लगा और एक समय ऐसा भाया कि यह लङ्का, बर्मा, श्याम आदि देशोंकी धर्म-भापाके रूपमें सम्मानित हुई, किन्तु हम भारतवासी इसे भूल गये। इसके विशाल साहित्यसे हम अपरिचित हो गये। कई सदियोंके उपरान्त पुनः हमारा ध्यान पालि भाषा और साहित्यकी ओर गया है और हम जान गये हैं कि यह हमारी ही धरोहर अभीतक विदेशों में रही है। अभिलेखों के रूपमें इसकी यहाँ विद्यमानतासे भी हम परिचित हो गये हैं। अब हमारे देशके विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं शिक्षा-परिषदों द्वारा इसके पठन-पाठनकी व्यवस्था की गयी है। सहस्रों छात्र प्रतिवर्ष पालिके अध्ययनमें निरत रहते है।

विशेषकर उत्तरप्रदेशकी माध्यमिक शिक्षा-परिषद्, बिहारके माध्यमिक शिक्षामण्डल, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय और बिहार-संस्कृतसमिति द्वारा पालि-परीक्षा की अच्छी व्यवस्था है। नागपुर, बम्बई, आगरा, रीवा, जबलपुर, उज्जैन, ग्वालियर, दिल्ली, इलाहाबाद, गोरखपुर, मगध, बिहार, भागलपुर, लखनऊ, कलकत्ता, जादवपुर, राँची आदिके विश्वविद्यालयों में भी पालिके पठन-पाठनकी व्यवस्था है और यह हिन्दी, संस्कृत आदि भाषाओं के पाठ्यक्रमों में भी वैकल्पिक रूपसे सम्मिलित है। प्रायः सभीने ही अपने पाठ्यक्रमोंमें पालि साहित्यके इतिहासको स्थान दिया है, किन्तु छात्रोंके सामने इसके अध्ययनकी एक विकट समस्या रही है। अभीतक पालि साहित्यके जो भी इतिहास हिन्दी में लिखे गये हैं, वे छात्रों के लिए उपयोगी नहीं हैं। कुछ विशालकाय हैं और कुछ अत्यन्त लघु हैं।

इस समय कुशीनगर और सारनाथके ही विद्यालयोंमें कमसे कम १००० छात्र प्रतिवर्ष हाईस्कूल और इण्टर में पालि लेते हैं और दोनों ही परीक्षाओंके पाठ्यक्रमों में ‘पालि साहित्यका इतिहास’ निर्धारित है। प्रतिवर्ष बहुसंख्यक छात्र मुझसे आग्रह करते रहे हैं कि में उनके लिए उपयोगी ग्रन्थको लिखें। हमारे कुछ अध्यापक बन्धुओंका भी विशेष आग्रह रहा है, विशेषकर उनका जो कि पालिके प्राध्यापक हैं। इनकी कठिनाइयोंका ध्यान रखकर ही इस ग्रन्थको मैंने प्रस्तुत किया है। इसके प्रायः सभी वर्णन मूल ग्रन्थोंपर आधारित हैं। सन्दर्भ-ग्रन्थों का नामोल्लेख पाइटिप्पणियों में कर दिया गया है। आशा है कि यह ग्रन्थ पाठकोंको पसन्द आयेगा और इससे उनकी परीक्षा सम्बन्धी समस्याएँ हल हो जायेंगी। पालि भाषाके जानकारों एवं विद्वानोंके लिए भी इस ग्रन्थमें पर्याप्त सामग्री सङ्कलित है। इससे उनका भी ज्ञान-वर्द्धन होगा।

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