Panchatantram (पञ्चतन्त्रम्)
₹55.00
Author | Dr. Ganga Sagar Ray |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2021 |
ISBN | - |
Pages | 133 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0740 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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पञ्चतन्त्रम् (Panchatantram) भारतीय कथा-साहित्य अपनी विशिष्टता में विश्व-साहित्य में अनुपम है। इनकी महत्ता और उपयोगिता से न केवल भारतीय ही उपकृत, चमत्कृत और प्रभावित हुए है अपितु बिश्व के सभी सभ्य साहित्यों में भारतीय साहित्य की इस विधा ने प्रवेश कर उन्हें सुपुष्ठा और प्रभावित किया है। भारतीय कथा-साहित्य में भी पञ्चतन्त्र नितान्त अनुश्म है जो कम-पे-कम विगत १५०० वर्षों में न केवल भारतीय जनता ही के अपितु विश्व के सभी लोगों के कुतूहल शमन और मनोरञ्जन का साधन रहा है। पञ्चतन्त्र की कहानियों ने विश्व क विवध देशों और भाषाओं में भ्रमण किया है और इनका प्रभाव परवर्ती कथा-साहित्य पर व्यापक रूप से पड़ा है। इस तथ्य का विदेशी विद्वानों ने मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है। ईसा को छठी सदी में फारस के प्रसिद्ध शासक खुशरो नैशेरवाँ (५३१ ई०-५७९ ई०) की दृष्टि पञ्चतन्त्र की कहानियों पर भारतीय कथा-साहित्य अपनी विशिष्टता में विश्व-साहित्य में अनुपम है। इनकी महत्ता और उपयोगिता से न केवल भारतीय ही उपकृत, चमत्कृत और प्रभावित हुए है अपितु बिश्व के सभी सभ्य साहित्यों में भारतीय साहित्य की इस विधा ने प्रवेश कर उन्हें सुपुष्ठा और प्रभावित किया है।
भारतीय कथा-साहित्य में भी पञ्चतन्त्र नितान्त अनुश्म है जो कम-पे-कम विगत १५०० वर्षों में न केवल भारतीय जनता ही के अपितु विश्व के सभी लोगों के कुतूहल शमन और मनोरञ्जन का साधन रहा है। पञ्चतन्त्र की कहानियों ने विश्व क विवध देशों और भाषाओं में भ्रमण किया है और इनका प्रभाव परवर्ती कथा-साहित्य पर व्यापक रूप से पड़ा है। इस तथ्य का विदेशी विद्वानों ने मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है। ईसा को छठी सदी में फारस के प्रसिद्ध शासक खुशरो नैशेरवाँ (५३१ ई०-५७९ ई०) की दृष्टि पञ्चतन्त्र की कहानियों पर पड़ी और उसने इनका अनुवाद अपने दरबारी संस्कृतज्ञ हकीम बरजोई से पहलवी भाषा (५३३ ई०) में कराया। तदनन्तर ‘बुद’ नामक एक ईसाई पादरी ने ५६० ई० में सोरिअन भाषा में ‘कलिलग’ और दमनग’ नाम से (करटक और दमनक’ संस्कृत नाम) इनका अनुवाद किया। सीरिअन से अरबी भाषा में ‘कलोलह’ और ‘दमनह’ नाम से अनुवाद हुआ । अरबी अनुबाद अब्दुल्ला अलमुकफ्फा नामक विद्वान् ने (७५० ३०) में किया। ७८१ ई० में अब्दुल्ला विन हवाजी ने पुनः पहलवो से अरबी में अनुवार किया। इस अनुवाद का अरबी कविता में रूपान्तर महल-विन-नवबस्त ने यहिया बरमदी की आज्ञा से किया। इसके अनन्तर समय-समय प अन्य अनुवाद भी किये गये।
पूर्वी जगत् में तो ये कहानियाँ इससे पू ही फैल गयी थी। अरबी भाषा में इन कहानियों के प्रचार-प्रसार कहानियां ग्रोक, लैटिन, जर्मन, पेन्च, स्पेनिश, अंग्रेजी आदि भाष में अनूदित हुई और यह क्रम १६ वीं सदी तक चलता रहा। ग्रीस सुप्रसिद्ध कथा-संग्रह ‘इसेप की कहानियाँ’ तथा अरब की प्रसि कहानियाँ ‘अरेबियन नाइट्स’ के आधार पर भी भारतीय कहानियापड़ी और उसने इनका अनुवाद अपने दरबारी संस्कृतज्ञ हकीम बरजोई से पहलवी भाषा (५३३ ई०) में कराया। तदनन्तर ‘बुद’ नामक एक ईसाई पादरी ने ५६० ई० में सोरिअन भाषा में ‘कलिलग’ और दमनग’ नाम से (करटक और दमनक’ संस्कृत नाम) इनका अनुवाद किया। सीरिअन से अरबी भाषा में ‘कलोलह’ और ‘दमनह’ नाम से अनुवाद हुआ । अरबी अनुबाद अब्दुल्ला अलमुकफ्फा नामक विद्वान् ने (७५० ३०) में किया। ७८१ ई० में अब्दुल्ला विन हवाजी ने पुनः पहलवो से अरबी में अनुवाद किया।
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