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Pancha Tantram (पञ्चतन्त्रम्)

382.00

Author Dr. Sudhakar Maliviya
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2021
ISBN 978-81-218-009-4
Pages 828
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0746
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Description

पञ्चतन्त्रम् (Panchatantram) भारतीय कथा-साहित्य का विश्व-साहित्य में अत्यन्त उत्कृष्ठ स्थान रहा है। वस्तुतः भारतीय कथा-साहित्य विश्व-कथासाहित्य का जनक भी कहा जा सकता है। संस्कृत कया-साहित्य रोचकता, सरलता, मधुरता, भावाभिव्यक्ति और उपदेशात्मकता के कारण विश्व के सभी विद्वानों द्वारा प्रशंसित हुआ। इसमें भारतीय जीवन, विचारधारा, कार्य-कलाप और नैतिकता की पराकाष्ठा प्राप्त होती है। अधिकांश कथा-साहित्य में व्यक्ति विशेष का नाम न रखकर पशु, पक्षी या अन्य जीव-जन्तु को उसके प्रतीक के रूप में खड़ा किया गया है। अतः वृद्ध इसको मनोहरता पर आकृष्ट होते हैं। इसमें सिंह, हाथी, बिल्ली. चूहा, गीदड़, कोबा, कछुआ आदि पशु-पक्षी हमें नीति की शिक्षा, बाचार की शिक्षा और कर्तव्यो पदेश देते हैं। इन कथाओं में कौतूहल, विनोद, हासपरिहास, छल-प्रया, प्रेम- प्रपञ्च, विश्वासघात, धर्म-आधार, नीति, व्यवहारज्ञान और काव्यमन्दर्य हमें प्राप्त होता है। इन्हीं विभिन्नताओं के कारण संस्कृत-कथासाहित्य आबाल वृद्ध के लिए सदैव बाकर्षण एवं मनोरञ्जक रहा है।

कथा-साहित्य का उद्भव एवं विकास भारत में वैदिक युग के भारतीयों के जीवन के प्रारम्भिक काल से ही अनेक प्रकार की कथाए लोगों में प्रचलित थी। आरम्भ में कथाओं के विकास को प्रारम्भिक अवस्थाओं में अ‌द्भुत कथा (फेयरी टेलस्) लोक कथा और कल्पित कथा (मिथस्) अथवा पशु-कथा (फेवेलस्) के रूप में उनमें भेद स्थापित नहीं किया जा सकता। ऋग्वेद में यद्यपि पशु-पक्षियों की कयाए नहीं है किन्तु उनमें पशु-कथा का बीज विद्यमान है। ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध सूक्त’ का जिसमे यज्ञ के अवसर पर मन्त्र गान करते हुए ब्राह्मणों की तुलना टर्र-टर करने वाले मेडकों से की गई है, यह मनुष्य के आस-पास विद्यमान पशु-पक्षियों में मनुष्य को बादतों को स्थानान्तरित करना दृष्टिगत होता है। इससे स्पष्ट है कि मनुष्यों और बन्यप्राणियों के मध्य एक प्रकार का सम्बन्ध स्वीकार कर लिया गया था। इतना ही नहीं उन मेवकों को धर्व भर तपस्या करने वाले बती ब्राह्मण के समान भी पहा गया है। ऋग्वेद में देवशुनी सरमा और पणियों का संवाद आया है। इसमे सरमा नामक कुतिया पणियों (कृपण वणिकों) को उपदेश देती है कि वे चन-दान करें। यहाँ पर पणि सरमा को मित्र और बहन कहकर सम्बोधित करते हैं। इसमें जीवजन्तुओं के साथ आत्मीयता का बीज हमें ऋग्वेद-काल से ही दृष्टिगोचर होता है और यही संस्कृत कथा-साहित्य का बीज है।

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