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Laghutrayi Brihattriyi Shubhashit Darpan (लघुत्रयी बृहत्त्रयी सुभाषित दर्पण)

106.00

Author Dr. Vandna Shukla
Publisher Chaukhambha Krishnadas Academy
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2013
ISBN 978-81-218-0345-8
Pages 122
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0744
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Description

लघुत्रयी बृहत्त्रयी सुभाषित दर्पण (Laghutrayi Brihattriyi Shubhashit Darpan) प्रस्तुत ग्रन्थ का उद्देश्य भारतीय महाकाव्य के प्रमुख छः महाकाव्यों अर्थात् लघुत्रयी-बृहत्त्रयी में व्याप्त अलौकिक सौन्दर्य छटा को सुभाषित के धरातल पर देखने का यत्किञ्चित प्रयास मात्र है। संस्कृत साहित्य में प्रयुक्त सुभाषित ‘सोने पे सुहागा उक्ति को भलीभाँति चरितार्थ करती है। क्योंकि कवि जब कोई तथ्य व्यक्त करता है तो वह मात्र सोना होता है, परन्तु जब उस वक्तव्य को सुभाषित से सजाकर व्यक्त करता है तो वह वक्तव्य सौन्दर्य की पराकाष्ठा को अभिव्यक्त करने में क्षम होता है। प्रस्तुत अध्ययन के लिए लघुत्रयी-बृहत्रयी एवं काव्यशास्त्र के मौलिकग्रन्थों की विशेषरूप से सहायता ली गयी है। भाषान्तरित तथा अनूदित ग्रन्थों का भी यथोचित उपयोग विषय के यथा तथ्य की रक्षा के लिए किया गया है।
इस ग्रन्थ को तीन अध्यायों में विभक्त किया गया है।

पहले अध्याय को प्रस्तुत विषय की प्रस्तावना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जिसमें सुभाषित का परिचय, विकास तथा इतिहास आदि का संक्षिप्त विवेचन किया गया है। सुभाषित किस अलङ्कार के रूप में सबसे अधिक प्रयुक्त हुआ है। उस अलङ्कार का संक्षिप्त विवेचन काव्यशास्त्रीय आचार्यों की दृष्टि में, महाकाव्य का लक्षण काव्यशास्त्रीय दृष्टि में, लघुत्रयी वृहत्त्रयी महाकाव्यों एवं उनके प्रस्तोता का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।

द्वितीय अध्याय के अन्तर्गत लघुत्रयी महाकाय कुमारसम्भवम्, रघवंशम्, मेघदूतम् के उन्हीं श्लोकों का संकलन किया गया है जिसमें सुभाषित का प्रयोग महाकवि द्वारा किया गया है।

तृतीय अध्याय में बृहत्त्रयी महाकाव्य-किरातार्जुनीयम्, शिशुपालवधम्, नैषधीयचरितम् में प्रयुक्त महाकवियों द्वारा प्रयुक्त उन्हीं श्लोकों को संकलित किया गया है. जो सुभाषित युक्त हैं।

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