Panchatantram (पञ्चतन्त्रम् लब्धप्रणाशम्)
₹106.00
Author | Dr. Pushpa Gupta |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Pratisthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2007 |
ISBN | - |
Pages | 248 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0692 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
पञ्चतन्त्रम् (Panchtantram) संस्कृत कथा साहित्य को नीति कथा (Didactic tales) और लोक कथा (Popular tales) इन दो भागों में विभक्त किया गया है। नीतिकथाएँ उपदेश प्रधान होती हैं तथा इनके पात्र प्रायः पशु पक्षी ही होते हैं जबकि लोककथाएँ केवल मनोरञ्जन के लिए होती हैं और इनके पात्र मनुष्य ही होते हैं। पञ्चतन्त्र नीति कथा का मूर्धन्य ग्रन्थ है। इसमें पाँच तन्त्र हैं- मित्र भेद, मित्र सम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रणाश तथा अपरीक्षित कारक। इनमें से चतुर्थ तन्त्र ‘लब्ध प्रणाश’ दिल्ली विश्वविद्यालय में बी.ए. प्रोग्राम (पास) कोर्स में प्रथम वर्ष के संस्कृत पाठ्यक्रम में 2004 से निर्धारित किया गया है। सम्प्रति इसका केवल संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद ही उपलब्ध है। अन्वय, सन्धिविच्छेद, व्याख्या, व्याकरणात्मक टिप्पणियाँ तथा अन्य छात्रोपयोगी सामग्री उपलब्ध नहीं है।
इसमें सन्देह नहीं कि पञ्चतन्त्र अत्यन्त सरल, सुबोध भाषा में लिखा गया है जिसे समझने में तनिक भी कठिनाई नहीं होती परन्तु फिर भी हिन्दी अनुवाद के स्पष्टीकरण की आवश्यकता यत्र तत्र सर्वत्र प्रतीत होती है। परीक्षा में सन्धि विच्छेद एवं उपपद विभक्तियाँ विशेष रूप से पूछी जाती हैं जिनका प्रावधान अभी तक पञ्चतन्त्र के किसी भी संस्करण में नहीं है। छात्रों की इन्हीं कठिनाइयों को दूर करने की दृष्टि से ‘लब्धप्रणाश’ का प्रस्तुत व्याख्या ग्रन्थ लिखा गया है। इसमें मूल संस्कृत पाठ, अन्वय एवं सन्धिविच्छेद, अन्वय क्रम से ही हिन्दी अनुवाद, स्पष्टीकरण, व्याकरणात्मक टिप्पणियाँ और अन्त में संस्कृत व्याख्या भी दी गई है। व्याकरणात्मक टिप्पणियों में कारक एवं उपपद विभक्तियों का विशेष ध्यान रखा गया है। सम्बद्ध सूत्र देते हुए यथाशक्ति यह भी बतलाया गया है कि अमुक स्थान पर अमुक कारक विभक्ति का प्रयोग क्यों किया गया है। पञ्चतन्त्र तथा अन्य ग्रन्थों से समानार्थक पद्य भी उद्धृत किए गए हैं। पाठ भेद का निर्देश करते हुए ‘कौन-सा पाठ सर्वाधिक समीचीन है’ इसका युक्तियुक्त, तर्कसङ्गत विवेचन भी प्रस्तुत किया गया है। छात्रों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सरल, सरस पदावली का ही प्रयोग किया गया है।
Reviews
There are no reviews yet.