Paurohitya Karma Prashikshak (पौरोहित्य कर्म प्रशिक्षक)
₹250.00
Author | Dr. Sachchidanand Pathak |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 8th edition, 2020 |
ISBN | - |
Pages | 344 |
Cover | Hard Cover |
Size | 23 x 2 x 15 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | MP0014 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
पौरोहित्य कर्म प्रशिक्षक (Paurohitya Karma Prashikshak) भारतीय संस्कृति मानव जीवन को ही अनुष्ठानपरक बनाने की प्रेरणा प्रदान करती है। यही कारण ही भारतीय संस्कृति की अजस्रधारा को प्रवाहित करने वाली भाषा देववाणी संस्कृत के माध्यम से ही भारतीय जीवन-दर्शन में रचे-बसे समस्त संस्कार सम्पादित किये जाते हैं। संस्कारों से युक्त होने के लिए अनुष्ठानपरक विधि का उपयोग शास्त्र सम्मत हो सके इस हेतु प्रत्येक जन को इसका सामान्य ज्ञान आवश्यक है। इन संस्कारों के लिए प्रयुज्यमान कर्मकाण्ड ठीक रीति से हो सके और उसका प्रभाव यजमान के जीवन में सकारात्मक दिखायी दे इस कार्य हेतु कर्मकाण्ड सम्पादित कराने वाले पुरोहितों को भी समुचित ज्ञान होना आवश्यक है। उ.प्र. संस्कृत संस्थान संस्कृत भाषा, भारतीय संस्कृति और संस्कार को जन-जन से परिचित कराने के लिए कृत संकल्पित संस्थान है।
अतः ‘पौरोहित्य कर्म प्रशिक्षक’ नामक यह पुस्तक पुरोहितों को शुद्ध यथोचित रीति से कर्मकाण्ड कराने की विधि का ज्ञान कराने हेतु विभिन्न विद्वानों की मदद से इस पुस्तक का निर्माण संस्थान ने किया है। इसके अतिरिक्त पुरोहित के अभाव में भी स्वयं कोई व्यक्ति यदि अनुष्ठान करना चाहता है तो इस पुस्तक की सहायता से वह शुद्ध यथायोग्य रीति से अपने दैनिक व विशेष अवसरों पर कर्मकाण्ड का सम्पादन कर सकता है।
पौरोहित्य कर्म प्रशिक्षक के प्रथम खंड में नित्यकर्मविधि के अन्तर्गत दैनिक क्रियाओं, सन्ध्योपासन, बलिवैश्वदेव, नित्यतर्पण आदि स्वयं किये जाने वाले बिन्दु अनिवार्य विषय में दिये गये हैं। पर्यावरण की पवित्रता, शुद्धता तथा सूक्ष्म चेतना से निरन्तर जुड़े रहने की प्रक्रिया में नित्य-होम का विधान है, जिसे विशिष्ट कर्मकाण्डों के प्रकरण में चतुर्थ खंड में होमविधि के साथ दे दिया गया है।
भारतीय जीवन पद्धति (जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है) में संस्कारों की अपनी अलग विशेषता है। जीवन में इनकी पग-पग पर अनिवार्यता है। उनके महत्त्व पर इस पुस्तक में संपादकों द्वारा विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत पुस्तक में संस्कारों के प्रारम्भिक परिचय के साथ, प्रमुख संस्कारों का उल्लेख संक्षेप में कर दिया गया है, किन्तु उपनयन, विवाह, अन्त्येष्टि जैसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रचलित संस्कारों की प्रस्तुति ग्रन्थ के द्वितीय खण्ड में किचित विस्तार के साथ की गई है, जिससे इन्हें संपादित कराने में कोई कठिनाई न हो। यद्यपि जन्मोत्सव संस्कार की भी प्रमुखता नहीं रही फिर भी युग की माँग के अनुरूप उसकी प्रमुखता इन दिनों विशेष रूप से बढ़ती जा रही है, इसलिये इसे भी द्वितीय खंड में अलग से सम्मिलित कर दिया गया है।
ग्रन्थ के तृतीय खंड में देवपूजा के सामान्य परिचय के साथ-साथ सामान्य रूप से प्रयुक्त होने वाले संकल्प, पंचोपचार, षोडशोपचार, कलशस्थापन आदि की विधियाँ दे दी गयी हैं। इसी क्रम में आराध्यदेव विशेष, नैमित्तिक एवं काम्य कार्यों के लिये जन सामान्य द्वारा विशिष्ट देवों के पूजन की विधि एवं प्रक्रिया भी दी गयी है। इसके अन्तर्गत यज्ञ एवं होम प्रकरण है जिनमें प्राणप्रतिष्ठा, सर्वतोभद्रस्थापन, लिंगतोभद्र देव विशेष पूजन आदि सम्मिलित हैं। दैनन्दिन जीवन में तथा विशेष अवसरों पर श्रीमद्भागवत जैसे पुराणों का पारायण वाचन/पूजन सत्यनारायण कथाश्रवण आदि कराये जाते हैं। उनकी भी संक्षिप्त रूपरेखा चतुर्थ खंड में अलग से दे दी गयी है। इसी प्रकरण में वास्तु पूजा तथा गृहप्रवेश को भी समाहित किया गया है।
जैसा कि ऊपर के प्रस्तरों में उल्लिखित किया जा चुका है, पौरोहित्य कर्म के अन्तर्गत ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान भी आवश्यक है, ताकि विभिन्न कायर्यों एवं पर्षों के मुहूर्त की जानकारी पञ्चाङ्ग के माध्यम से दी जा सके। विवाह द्विरागमन आदि के लिये उचित समय अथवा मुहूर्त की अवधारणा वर-कन्या की कुण्डली/गुणों आदि के मिलान की आवश्यकता सामान्य जनजीवन को होती है। कार्यारम्भ (यात्रारंभ) एवं वास्तु प्रकरण में भी ज्योतिष के माध्यम से समय एवं प्रक्रिया के संबंध में उचित परामर्श दिया जाता है। इसलिये पंचम खंड में ज्योतिष एवं मुहूर्त खंड को सामान्य उपयोग हेतु दे दिया गया है।
परिशिष्ट में सामान्य रूप से प्रयुक्त होने वाले वैदिक मन्त्रों, स्तोत्रों, सूक्त आदि को भी यथासाध्य (स्थानाभाव के होते हुये भी) रखने का प्रयास किया गया है। वैदिक मन्त्रों को स्वरांकन सहित उच्चारण की शुद्धता के साथ उद्धृत किया गया है। इसी के अन्तर्गत कतिपय पारिभाषिक शब्दों को संकलित किया गया है, जिससे जनसामान्य को प्रयोग का बोध हो सके। इस प्रकार यह अन्तिम भाग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसका पौरोहित्य कर्म के अन्तर्गत समुचित एवं शुद्ध उपयोग किया जाना आवश्यक है।
Reviews
There are no reviews yet.