Prasav Chintamani (प्रसव चिन्तामणि)
₹54.00
Author | Acharya Mukund Daivagya |
Publisher | Ranjan Publication |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2017 |
ISBN | 81-88230-58-8 |
Pages | 136 |
Cover | Paper Back |
Size | 13 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RP0019 |
Other | Dispatch In 1-3 days |
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प्रसव चिन्तामणि (Prasav Chintamani) माता के गर्भ में पल रहा एक-दो अणुओं का समूह चंद महीनों में खुश-खुर्रम, सुर्ख-सफेद बाल-मानव कैसे बन जाता है? जानता है कोई कि वह मुन्ना बनेगा या मुन्नी ? जानता है कोई कि वह अपने जन्मदाताओं की, बल्कि संबन्धियों तक की किस्मत पलटने आया है ? और जानता है कोई कि वह जमीन और आसमान के कुलावे एक करने आया है, या फिर अरबों-खरबों अणुओं की तरह वह भी इस उमड़ती-घुमड़ती दुनिया में लापता होने आया है ?
प्रसव या जन्म के सम्बन्ध में ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर ज्योतिष की इस पुस्तक में उसी प्रकार तत्काल मिलता है जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न से मनोवांछित वस्तु मिलती है, अतः इस पुस्तक का प्रसव-चिन्तामणि नाम सार्थक है। गढवाल के समीप खण्डग्राम में 1887 ई० में जन्म लेकर 1979 ई० में बन्तिम सांस लेने तक अनेक ग्रन्थों की रचना करके ज्योतिषाचार्यों को चमत्कृत करने वाले आचार्य मुकुन्द दैवज्ञ ने 145 संस्कृत श्लोकों का चार प्रकरणों में संकलन किया था। इसे और भी सर्वांग संपूर्ण बनाने के लिए मैंने उन्हीं के ग्रन्य ज्योतिष तत्त्व से 38 श्लोक और संकलित करके उन्हें दस प्रकाशों में पुनियोजित किया। इस पुस्तक के संपादन का यह एक पक्ष है।
अतिरिक्त संकलन द्वारा श्लोकों की संख्या में वृद्धि के साथ उनके क्रम में भी परिवर्तन किया है जिससे विषय का विवेचन और भी व्यावहारिक तथा वैज्ञानिक बन गया है। संस्कृत और हिन्दी दोनों में शीर्षकों के संयोजन से विषय की दुरूहता कम हुई है और वह रोचक भी बन पड़ा है। इस पुस्तक में प्रतिपादित सिद्धान्तों की पुष्टि के लिए स्थान-स्थान पर अन्य ग्रन्थों से दिये गये उद्धरणों में वृद्धि की गयी है। प्रत्येक श्लोक के छन्द के उल्लेख से उनके सस्वर पाठ में सुविधा होगी, ज्योतिष के सोने से काव्य की गन्ध बिखरेगी। संपादन का यह दूसरा पक्ष है।
संपादन का तीसरा पक्ष है इसकी विस्तृत प्रस्तावना जो इस विषय के भूत और भविष्य का विश्लेषण करती है। गर्भाधान से लेकर अन्तिम संस्कार तक की मनुष्य की प्रायः सभी शुभ और अशुभ गतिविधियों पर ज्योतिष का प्रभाव क्यों, कैसे और किस हद तक पड़ता है, इन प्रश्नों के उत्तर में प्राचीन काल से अब तक सैकड़ों ग्रन्थ लिखे गये हैं, इस प्रस्तावना में उन प्रश्नों का उत्तर वैज्ञानिक दृष्टि से भी देने का प्रयास किया गया है। रजोदर्शन, गर्भाधान, भ्रूण-विकास, प्रसव आदि की प्रक्रिया पर ज्योतिष के नियमों की वैज्ञानिक नियम से तुलना की गयी है. नीत रेखाचित्त भी दिये गये हैं। जीव-विज्ञान और आनुवंशिकी के क्षेत्र में विज्ञान जो नित नये करिश्मे दिखा रहा है उनकी एक झलक भी दे दी गयी है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि मानव की, बल्कि प्रत्येक प्राणी की, प्रकृति को मनचाही प्रकृति में बदलने के कैसे-कैसे नुस्खे एक के बाद एक सामने आ रहे हैं।
हिन्दी अनुवाद इस ग्रन्थ के संपादन का चौथा पक्ष कहा जा सकता है। अनुवाद शब्दशः किया गया है किन्तु आवश्यकतानुसार भावार्थ और विवेचन भी उसमें सम्मिलित हैं। संस्कृत के ज्योतिष ग्रन्थों में जिस शब्दावली का प्रयोग किया गया है वह अत्यन्त असहज है, फिर भी इस अनुवाद को अधिक से अधिक सहज और सुबोध बनाने का प्रयास किया गया है। अनुवाद के भाषा-विन्यास में ध्यान रखा गया है कि संस्कृत से अनभिज्ञ और अल्पशिक्षित व्यक्ति भी उससे लाभान्वित हों। संस्कृत और हिन्दी की आमने-सामने प्रस्तुति से संस्कृत रसिकों को तो सुविधा होगी ही, इससे अनुवाद ग्रन्थों की प्रस्तुति में एक नया आयाम भी विकसित होगा। पांच परिशिष्ट भी दिये गये हैं जिनकी उपयोगिता अपनी है।
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