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Prashnotar Mani Mala (प्रश्नोत्तरमणिमाला)

20.00

Author Swami Ramsukhdas
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi & Sanskrit
Edition -
ISBN -
Pages 160
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0172
Other Code - 1175

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Description

प्रश्नोत्तरमणिमाला (Prashnotar Mani Mala) प्रश्नोत्तरकी परम्परा सृष्टिके आरम्भसे ही चली आ रही है। सृष्टिके आदिकालमें जब ब्रह्माजी उत्पन्न हुए तो उनके भीतर भी सर्वप्रथम यह प्रश्न प्रस्फुटित हुआ-‘ क एष योऽसावहमब्जपृष्ठ एतत्कुतो वाब्जमनन्यदप्सु’ (श्रीमद्भा० ३।८। १८) ‘इस कमलकी कर्णिकापर बैठा हुआ मैं कौन हूँ? यह कमल भी बिना किसी अन्य आधारके जलमें कहाँसे उत्पन्न हो गया?’ (‘मैं’ कौन हूँ और ‘यह’ क्या है?) इसे सृष्टिका आदिप्रश्न कहें तो अत्युक्ति न होगी! प्रबुद्ध जिज्ञासुओंके प्रश्नोंके उत्तरमें अबतक न जाने कितने ग्रन्थोंकी रचना हो चुकी है! जगन्माता पार्वतीके प्रश्न और आशुतोष भगवान् शंकरके उत्तरके फलस्वरूप जगत्में विविध लौकिक एवं अलौकिक विद्याओंका प्राकट्य हुआ है, विविध शास्त्रोंकी रचना हुई है। शौनकादि ऋषियोंके प्रश्न और सूतजीके उत्तरसे अठारह पुराण बन गये! केनोपनिषद् और प्रश्नोपनिषद्- इन दो उपनिषदोंकी रचना प्रश्नोंको लेकर ही हुई है। श्रीमदाद्यशंकराचार्यजीके द्वारा रचित ‘प्रश्नोत्तरी’ प्रसिद्ध ही है। सामान्यतः बाल्यावस्थासे ही बालकके जिज्ञासु हृदयमें प्रश्न प्रस्फुटित होने लगते हैं। परन्तु जब मनुष्य पारमार्थिक पथपर अपने पग रखता है, तब उसके भीतर प्रश्नोंका एक विशेष सिलसिला शुरू हो जाता है और वह ढूँढ़ने लगता है ऐसे सन्त या गुरुको, जो उसके प्रश्नोंका समुचित उत्तर देकर उसका सही मार्गदर्शन कर सके।

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