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Pratikatmak Tarka Shastra Praveshika (प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र प्रवेशिका)

293.00

Author Prof. Ashok Kumar Varma
Publisher Motilal Banarasidass
Language Hindi
Edition 1999
ISBN 978-81-208-2795-0
Pages 384
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code MLBD0150
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Description

प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र प्रवेशिका (Pratikatmak Tarka Shastra Praveshika) उन्नीसवीं शताब्दी तक अरस्तूयी तर्कशास्त्र के लम्बे इतिहास में अपने क्षेत्र में एकाधिकार जमा लिया था। तर्कशास्त्र और अरस्तूयी तर्कशास्त्र पर्यायवाची माने जाने लगे थे। बीसवीं शताब्दी में पहली बार अरस्तूयो तर्कशास्त्र के मौलिक सिद्धान्तों का प्रत्ययवादियों ने तथा उपयोगितावादियों ने विरोध किया। इसके अतिरिक्त, जैसे-जैसे विज्ञान की प्रगति हुई तो यह स्पष्ट होने लगा कि अरस्तु के सिद्धान्त गलत भले ही न हों पर अपर्याप्त अवश्य है। फलतः तर्कशास्त्र की एक नई विधा का जन्म हुआ जिसे प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र कहा जाता है। प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र ने प्रत्ययवादियों तथा उपयोगितावादियों के दृष्टिकोणों को नकारा और अरस्तूयी तर्कशास्त्र को आधार मानकर तर्कशास्त्र को विकसित किया। अतः प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र अरस्तूयी तर्कशास्त्र का विरोध नहीं करता, उसकी कमियों की आपूर्ति करता है तथा उसे विकसित करता है।

प्रायः पिछले चार-पाँच दशक पहले दो-चार भारतीय विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र के पाठ्यक्रम में प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र का प्रवेश हुआ। धीरे-धीरे यहाँ के अन्य विश्वविद्यालयों के विद्वानों का भी ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ। पर दर्शनशास्त्र की अन्य शाखाओं पर उन्होंने जितने ग्रन्थों की रचना की है उनकी तुलना में प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र की बहुत कम पुस्तकें लिखी गई हैं और हिन्दी में तो उनकी संख्या नगण्य है।

पुस्तक की रचना विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर की गई है। सम्पूर्ण पुस्तक को दो भागों में बाँट दिया गया है। पहले भाग में पाश्चात्य तर्कशास्त्र का परिचय तथा प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र के आधारभूत सिद्धान्तों की व्याख्या की गई है। स्नातक वर्ग के लिए पहला भाग पर्याप्त है। दूसरा भाग स्नातकोत्तर वर्ग के विद्यार्थियों के लिए है।

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