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Pratistha Mahodadhi (प्रतिष्ठा महोदधिः)

320.00

Author Pt. Vayunandan Mishra
Publisher Shri Vishnu Prakashan
Language Sanskrit
Edition -
ISBN -
Pages 390
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SVP0017
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Description

प्रतिष्ठा महोदधिः (Pratistha Mahodadhi) संस्कृत वाङ्मय में वेद अपोरुदेय, नित्य एवं मनादि सिद्ध है। वेदों में ज्ञानाष्य कर्मकाण्ड एवं उपासनाकाण्ड इन तीन विषयों का मुख्यरूप से सविस्तर वर्णन मिलता है। उपासना-विधि में जिसे जिस देवता में विशेष निष्ठा हो, उसमें मुहद भावना जागृत करने के लिए देवप्रतिष्ठा की आवश्यकता होती है। प्रतिमा में भी शास्त्रानुकुल सविधि देवत्व शरीर तथा प्राण प्रतिष्ठापन आवश्यक है, जो बिना वैदिक मन्त्रों के कथमपि सम्भव नहीं है। क्योंकि, देवता में देवत्य प्रतिष्ठापन हेतु तत्तद् मन्त्रों का विनियोग वेदों में हो उपलब्ध होते हैं। सुधी वैदिक विद्वानों द्वारा विधि-विधान से प्रतिष्ठित देवप्रतिमा में ही पूजन-आराधना करने से मनोरथ-सिद्धि एवं मनःशान्ति होती है, अन्यथा कथमापी सम्भव नहीं।

अब यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि, प्रतिष्ठा कराने के लिए एक सर्वाङ्गपरिपूर्ण एवं सर्वथा विशुद्ध पुस्तक चाहिए, जिससे विद्वद्-वर्ग प्रतिष्ठाका कार्य सुविधानुसार करा सकें। अतः विद्वानों की इस आवश्यकता पूति करने के लिए ही अनेक कर्मकांड-द्रन्थों के सफल लेखक, काशी के सुप्रसिद्ध कर्मकाष्टी विद्वान् स्व० पण्डित श्रीवायुनन्दन मिश्रजी ने प्रस्तुत पुस्तक की रचना कर बहुत बड़ी कमी को पूरा किया है।

इस सत्प्रयास के लिए श्री मिश्रची सर्वया अभिनन्दनीय हैं। प्रतिष्ठा कराने हेतु विद्वानों के लिए यह पुस्तक इतनी उपयोगी सिद्ध हुई कि बहुत स्वल्प समय में ही इसके पांच संस्करण हाथो हाथ बिक गये और फिर भी पाठक बर्ग की नित्य प्रति माँग बनी ही रहती है। इसकी उपयोगिता का सब से बढ़ा ज्वलन्त प्रमाण यही है। कुछ विशेष कारणों से प्रस्तुत संस्करण के प्रकाशन में अधिक विलम्ब हुआ। इसके लिए प्रतिष्ठा कराने वाले विद्वानों को विशेष प्रतीक्षा करनी पड़ी और उन्हें पुस्तक के जाब में अत्यधिक कठिनाइयाँ भी उठानी पड़ीं, एतदयं प्रकाशक को हादिक क्षोभ है।

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