Premyog Ka Tattva (प्रेमयोग का तत्त्व)
₹63.00
Author | Jaydayal Goyndka |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 351 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0152 |
Other | Code - 527 |
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CompareDescription
प्रेमयोग का तत्त्व (Premyog Ka Tattva) जब से मेरे ज्ञान योग सम्बन्धी लेखोंका संग्रह ‘ज्ञानयोगका तत्त्व’ प्रकाशित हुआ है, तभीसे कुछ लोगोंका यह आग्रह है कि प्रेमसम्बन्धी लेखोंका भी एक अलग संग्रह प्रकाशित किया जाय, जिससे प्रेमपथके पथिकोंको एकत्र ही प्रेमसम्बन्धी पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो सके। इसलिये इस पुस्तकमें प्रेमसम्बन्धी २३ लेखोंका संग्रह किया गया है। ये सभी लेख पहले ‘कल्याण’ में और बादमें ‘तत्त्व-चिन्तामणि’ आदि पुस्तकोंमें भी प्रकाशित हो चुके हैं। इन लेखोंमें प्रेमके वास्तविक स्वरूप और उसकी प्राप्तिके विविध साधनोंका वर्णन तो है ही, साथ ही श्रद्धा और प्रेम, प्रेम और शरणागति, प्रेम और समता, भगवत्प्रेम और भगवत्-सुहृदताका तत्त्व भी भलीभाँति समझाया गया है। एवं भगवान्के प्रति महाराज दशरथ, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सीता और भक्त सुतीक्ष्ण आदिका तथा श्रीरुक्मिणीजी, श्रीराधाजी, द्रौपदी, मीराबाई और गोपियोंका एवं भक्त प्रवीर आदि भगवत्प्रेमीजनोंका, जो अलौकिक आदर्श और अनुकरणीय प्रेमभाव था, उसका भी विवेचनपूर्वक स्पष्टतया दिग्दर्शन कराया गया है।
यद्यपि इन लेखोंमें प्रेमके विषयकी पुनरुक्ति दिखायी देती है, किन्तु वह अनिर्वचनीय प्रेमतत्त्व साधककी समझमें भलीभाँति आ जाय, इसलिये प्रेमके विषयको बार-बार सुन- पढ़कर समझ लेना अत्यन्त आवश्यक होता है; अतः इस पुनरुक्तिको दोष नहीं समझना चाहिये। एवं प्रेमको प्राप्त करनेके इच्छुक साधक उचित समझें तो इन लेखोंको पढ़ने और मनन करनेकी कृपा करें और तदनुसार अपने जीवनको विशुद्ध भगवत्प्रेममय बनानेका प्राणपर्यन्त प्रयत्न करें-यही मेरा उनसे विनम्र निवेदन है।
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