Radha Rahasyam (राधा-रहस्यम्)
₹127.00
Author | Pt. Ashok Kumar Gaud |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2016 |
ISBN | - |
Pages | 400 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0694 |
Other | Dispatched in 3 days |
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राधा-रहस्यम् (Radha Rahasyam) हिन्दूधर्म के अनुसार ‘शक्ति’ ईश्वरत्व का सर्वोच्च स्वरूप है। इस भारतवर्ष में शक्तिपूजा अनादिकाल से होती चली आ रही है। यही कारण है कि शक्ति उपासना के विधि-विधानों का स्वरूप आज भी अनेकानेक ग्रन्थों में प्राप्त होता है। वैसे तो शक्ति उपासना का पूर्ण विधान तन्त्रशास्त्र के ग्रन्थों में ही सन्निहित है और तन्त्रशास्त्र गुरुगम्य है। ‘शक्तृशक्तौ’ धातु से ‘क्तिन्’ प्रत्यय करने पर शक्ति शब्द व्युत्पन्न होता है।’ शक्ति’ शब्द की व्याख्या देवी भागवत में इस प्रकार से की गई है- ‘श’ शब्द ‘मंगलवाचक होने से ‘ऐश्वर्यवाचक है तथा ‘क्ति’ शब्द पराक्रम के अर्थ में है। इससे ऐश्वर्य और पराक्रम को देने वाली ही शक्ति कहलाती है
दुर्गा, काली, लक्ष्मी, राधा ये सभी शक्ति ही हैं और वर्तमान समय में इन सभी की पूजा हिन्दूधर्म में अनादिकाल से होती आ रही है। सिद्धिरूपा शक्तियाँ तो अनन्त हैं और उनके प्रकार भी अनन्त हैं। जिस प्रकार का भगवान् भोग करना चाहते हैं, उसी प्रकार की शक्तियों को वे अङ्गीकार करते हैं। भगवान् की कितनी ही सिद्धरूपा शक्तियों का प्रत्यक्ष होता है और कितनी ही शक्तियों का पारोक्ष्य ही रहता है। ‘श्री प्रभृत्ति परोक्ष शक्तियाँ हैं और राधिका प्रभृत्ति अपरोक्ष सिद्धियाँ हैं।’ रामावतार, कृष्णावतार आदि अवतारों में जिन-जिन श्रीसीता, श्रीराधा प्रभृत्ति देवियों का भगवान् ने भोग किया है, वे सभी लौकिक स्त्रियाँ नहीं थी अपितु साक्षात् लक्ष्मी ही थीं। क्योंकि भगवान् की शक्ति भगवान् से अलग नहीं हो सकती क्योंकि वह शक्ति भी भगवान् की ही है। यही कारण है कि राधा श्रीकृष्ण की नित्यसिद्धाप्रिया हैं।
संसिद्धचर्थक राध् धातु से राधा शब्द व्युत्पन्न होता है। इस प्रकार ‘रा’ शब्द दानवाचक है, और’ धा’ शब्द धारणार्थक है। हमारे शास्त्रकारों ने ‘राधा’ नाम की व्युत्पत्ति इसी प्रकार से की है। सीता के तुल्य राधा भी अयोनिसम्भवा और मूलप्रकृतिरूपिणी हैं। राधादेवी के मूलप्रकृतिरूपा होने के कारण वे सर्ववेदमयी, सर्वदेवमयी, सर्वलोकमयी, सर्वशक्तिमयी हैं। यदि यह कहा जाय राधा ही त्रिगुणात्मक संसार हैं, तो यह अतिशयोक्ति न होगी। जो स्थान शक्तियों में लक्ष्मी, सरस्वती और माता पार्वती का है, वही मुख्य स्थान राधा का भी है। सीतोपनिषद् में जो सीता का स्वरूप वर्णित हुआ है, वही स्वरूप राधा का भी है। वेद में भी राधा का उल्लेख प्राप्त होता है। इसलिये यह कहा जा सकता है देवी राधा की उपासना नवीन नहीं है, अपितु प्राचीनकाल से होती चली आ रही है।
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