Raghuvansh Mahakavyam (रघुवंशमहाकाव्यम् सम्पूर्णम्)
Original price was: ₹600.00.₹450.00Current price is: ₹450.00.
Author | Acharya Shrinivas Sharma |
Publisher | The Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2017 |
ISBN | 978-81-217-0215-7 |
Pages | 642 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0054 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
9 in stock (can be backordered)
CompareDescription
रघुवंशमहाकाव्यम् सम्पूर्णम् (Raghuvansh Mahakavyam) कालिदास द्वारा प्रणीत रघुवंश एवं कुमारसम्भव महाकाव्य अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इनमें भी रघुवंश कालिदास का प्रौढ़तम काव्य है; जो सम्प्रति उन्नीस सर्गों में उपलब्ध होता है। ऐसा जान पड़ता है कि इस काव्य में कुछ और भी सर्ग रहे होंगे; क्योंकि उन्नीसवें सर्ग में ग्रन्थ समाप्तिसूचक पद्य नहीं दिखाई देता। इस काव्य का प्रारम्भ वाणी एवं अर्थरूप परमेश्वरयुगल की वन्दना से की गई है। तत्पश्चात् रघुवंशीय राजाओं में से दिलीप से प्रारम्भ कर अग्निवर्ण तक का वर्णन किया गया है। इसके प्रथम सर्ग में सन्तति-विहीन दिलीप का पुत्रप्राप्ति हेतु वशिष्ठ के आश्रम में जाना, द्वितीय सर्ग में नन्दिनी की परिचर्या, तृतीय सर्ग में दिलीपपुत्र रघु का राज्याभिषेक, चतुर्थ सर्ग में रघु का दिग्विजय, पञ्चम में रघुपुत्र अज का स्वयंवर में गमन, षष्ठ में इन्दुमती स्वयंवर, सप्तम में इन्दुमती के साथ अज का विवाह, अष्टम में अज का का विलाप, नवम में वसन्त एवं मृगया का वर्णन, दशम में रामावतार, एकादश में राम का सीता के साथ विवाह, द्वादश में रावण वध कर राम का अयोध्या प्रस्थान, त्रयोदश में राम का अयोध्या आगमन एवं सबसे मिलन, चतुर्दश में राम का राज्याभिषेक एवं सीता का परित्याग, पञ्चदश में सीता का पृथ्वी-प्रदेश, षोडश में कुश का राज्याभिषेक एवं अयोध्या आगमन तथा कुमुद्धती से उसका परिणय, सप्तदश में कुश का स्वर्गारोहण एवं उसके पुत्र अतिथि का राज्याभिषेक, अष्टादश में अतिथिपुत्र निषध से लेकर सुदर्शन तक का राज्य-वर्णन एवं उन्नीसवें सर्ग में अग्निवर्ण की कामकेलि का वर्णन किया गया है।
कालिदास-प्रणीत प्रकृत रघुवंश महाकाव्य पर वर्तमान में यों तो अनेकानेक संस्कृत व्याख्यायें समुपलब्ध हैं, फिर भी मल्लिनाथकृत सञ्जीविनी व्याख्या ही सर्वातिशायी है। अन्य समस्त संस्कृत व्याख्यायें उसके समक्ष नगण्य हैं। इसीलिये इस संस्करण को मल्लिनाथकृत सञ्जीविनी व्याख्या से ही अलंकृत किया गया है. जो कि छात्रों के साथ-साथ विद्वानों के लिये भी सर्वतोभावेन उपादेय है। इसी के साथ-साथ रघुवंश के प्राचीन निर्णयसागर-संस्करण में स्थापित टिप्पणियों को भी यथास्थान स्थापित किया गया है, यतः ये टिप्पणियाँ अध्येताओं, विद्वानों एवं शोधकर्ताओं-सभी के लिये परम उपयोगी हैं। इस प्रकार मल्लिनाथकृत सञ्जीविनी एवं निर्णयसागर संस्करण में प्रदत्त टिप्पणियों से प्रकृत संस्करण को अलंकृत करते हुये छात्रों के सुखबोधार्थ श्लोकों का अन्वय एवं ‘ज्योत्स्ना’ हिन्दी व्याख्या के साथ-साथ भूमिका-भाग में हिन्दी भाषा में समस्त साँ का कथासार भी दे दिया गया है, ताकि ग्रन्धकार के अभिप्राय को हृदयंगम करने में अध्येताओं को किञ्चिदपि कठिनाई न हो। आशा एवं विश्वास है कि अध्येतागणों के लिये यह संस्करण अतीव उपयोगी सिद्ध होगा।
Reviews
There are no reviews yet.