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Raj Vallabha Mandanam (राजवल्लभमण्डनम्)

319.00

Author Shailaja Pandey
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2020
ISBN -
Pages 300
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0708
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Description

राजवल्लभमण्डनम् (Raj Vallabha Mandanam) सृष्टि के सभी जीवों के प्रादुर्भाव एवं अस्तित्व में दिक् (Space) एवं काल (Time) की शक्तियों की अवधारणा भारतीय चिन्तन का एक प्राचीन एवं सुविदित तथ्य है। प्राकृतिक शक्तियों से सामंजस्य बनाकर जीवन-यापन करने की इस कला का नाम ही वस्तुतः वास्तुविद्या है। पिछले वर्षों में इस विद्या के प्रति जन-सामान्य की जागरूकता बढ़ी है और सम्प्रति इस पर वैज्ञानिक पद्धति से भी गम्भीर कार्य हो रहा है।

मण्डन सूत्रधार द्वारा रचित राजवल्लभमण्डनम् वास्तुशास्त्र का एक अप्रतिम ग्रन्थ है। इसके रचनाकार को वास्तुविद्या के सिद्धान्त एवं प्रयोग दोनों का अप्रतिम ज्ञान था। मेवाड़ में रहते हुए इन्होंने अनेक प्रकार के भवनों का निर्माण किया था तथा क्रियाविधि-सम्बन्धी अपने ज्ञान एवं अनुभवों को अनेक ग्रन्थों के रूप में निबद्ध भी किया था। प्रस्तुत ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य राजमहल, दुर्ग आदि की रचना, नगर-सन्निवेश तथा राजकर्मचारियों के भवनों के निर्माण हेतु वास्तुशास्त्रीय विवरण प्रस्तुत करना है। इसमें सामान्य जनता के भवनों की निर्मिति के विषय में भी निर्देश प्राप्त होते हैं, किंतु वे भी एक राजा के द्वारा नगर या ग्राम बसाये जाने से ही सम्बन्धित हैं। इसके अन्तिम दो अध्याय मुख्यतः ज्योतिष-परक हैं एवं शकुनशास्त्र से भी घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध हैं। वास्तुशास्त्र की अप्रतिम विदुषी डॉ. (श्रीमती) शैलजा पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ की अत्यन्त शोधपरक हिन्दी व्याख्या पाठकों को आनन्दित करेगी, ऐसी आशा है।

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