Rasratan Samucchaya (रसरत्नसमुच्चय:)
₹585.00
Author | Sri Vagbhat Acharya |
Publisher | Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2019 |
ISBN | - |
Pages | 928 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KH0045 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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रसरत्नसमुच्चय: (Rasratan Samucchaya) इस “रसरत्नसमुच्चय ” ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रतियां तो यत्र तत्र उपलब्ध थीं किन्तु यह अमूल्य प्रन्थरत्न सुचारुरूपसे अद्यावधि कहीं भी छपा न था। हां, कुछ दिन पहले पूनेमें ‘आनन्दाश्रमकी ओरसे इसका एक संस्करण ऐसा प्रकाशित हुआ था जो बहुत ही अस्तव्यस्त और अनेक विचित्र टिप्पणियों द्वारा विद्वानोंको भी भ्रमजनक हो रहा थाः इससे इसकी शुद्धप्रति प्राप्त कर इसे सर्वोपयोगी शुद्ध रूपमें प्रकाशित करनकी चिरकालसे उत्कट उत्कण्ठा लग रही थी। क्योंकि हम अपने सदाके नियमानुसार अप्राप्य ग्रन्थरत्नों को येनकेनाप्युपायेन प्राप्त कर उन्हें सुचारुरूपसे प्रकाशित करनेकी चष्टामें सतत उद्यत रहते हैं। तदनुसार जामनगर निवासी आयुर्वेद शास्त्र के अप्रतिम अनुभवी विद्वान् प्रज्ञाचक्षु जगत्प्रसिद्ध वैद्यराज बावाभाई (विजयशंकर) अप्वलजीके प्रधान शिष्य रसप्रसाद – औषधालयाध्यक्ष वैद्यराज जीवरास कालिदासजीके द्वारा शुद्ध प्रति प्राप्त कर आवश्यक परिवर्त्तन, परिवर्द्धन और परिष्करणोंद्वारा सुपरिष्कृत तथा गुजराती भाषानुवादसे विभूषित कर सं० १९६५ में इसका प्रथम संस्करण हमने प्रकाशित किया जिसका गुर्जर जनताने बडा गौरव किया किन्तु हिन्दी जनता इसके हिन्दी भाषानुवादसे अलंकृत संस्करणके लिये चिरकालसे नितान्त लालायित हो रही थी। उसके सदनुरोधसे उसी अपने गुर्जर भाषाविभूषित प्रथम संस्करण के आधारपर “आयुर्वेदोद्धारक-औषधालय” के अध्यक्ष तथा “वद्य” नामक मासिक के सम्पादक वैद्यराज शंकरलाल हरिशकरीके द्वारा शुद्ध और सरल हिन्दी भाषानुवाद बनवाकर उससे विभूषित मूलसहित “रसरत्नसमुच्चय” का यह तृतीय संस्करण अनेक नवीन विशेषताओंसे विशेषित कर प्रकाशित किया है, विशेष क्या लिखें ? दृष्टिगोचर होनेपर इसकी उत्तमताका अनुभव आप स्वयमेव करेंगे।
यह ग्रन्थ पूर्व और उत्तर नामक दो खण्डोंमें विभक्त है। पूर्व खण्डमें ग्यारह और उत्तर खण्डमें उन्नीस अध्याय हैं। आरम्भम ग्रंथकारने पारदकी उत्तमता बतलाकर अभ्रक, वैक्रान्त, सुवर्णमाक्षिक, रौप्यमाक्षिक, गन्धक, हताल, मनसिल आदि अनेक रस, उपरस, माणिक, मोती, मूंगा, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम आदि रत्न, सोना, रूपा, तांबा, सीसा, रांगा, लोहा आदि घातु, और विष उपविष आदि अनेक खनिज पदाथाकी उत्पत्ति लक्षण शोधन, मारण, जारण आदिका वर्णन किया है। तदनन्तर गुरु शिष्यक लक्षण, शिष्यको दीक्षा देनेका क्रम, रसशाला, रसस्थापन, रससिद्धिके लिये संग्राह्य पदार्थ, रससिद्धिक निमित्त भिन्न २ जनोंके सहायकी आव श्यकता, परिभाषा, खरल, मूषा, पुट, व कोठी आदि यन्त्र बनानकी रीति, औषधग्रहणपरिभाषा तथा पारद के संस्कार, पारदबन्ध तथा भस्म आदि बना नकी रीति बताकर पूर्वखण्डकी समाप्ति की गयी है।
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