Ravanarjuniyam (रावणार्जुनीयम्)
₹1,275.00
Author | Prof. Vrajesh Shrivastava |
Publisher | Chaukhambha Vidya Bhavan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2015 |
ISBN | 978-93-83847-82-2 |
Pages | 594 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0691 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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रावणार्जुनीयम् (Ravanarjuniyam) संस्कृत-वाङ्मय अपने काव्य की उत्कृष्टता और विपुलता के लिये जगद्विख्यात है। मानव-ज्ञान की प्रत्येक शाखा का सम्यक् विस्तार इस भाषा में हुआ है। काव्यग्रन्थों में प्रत्येक काव्य अपने निजी गुणों से विभूषित हैं। कुछ ग्रन्थ सुलभ होने के कारण आज तक मर्मज्ञों के बीच में गहनानुशीलन का विषय बने हुए हैं; परन्तु कुछ ग्रन्थ अभी तक अन्धकार गर्त में डूबे रहने के कारण विचित्रताओं से भरपूर होते हुए भी जिज्ञासु पाठकों की दृष्टि से ओझल हैं। भवभूति का यह कथन युक्तिसङ्गत जान पड़ता है- ‘कालो ह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी’। इस अपार भवसागर में काल की कराल गति के कारण न जाने कितने ही ग्रन्थरत्न अब भी अदृश्य ही पड़े हैं। बस आवश्यकता है तो केवल गोप्त्ताखोरों की और रत्नपारखियों की।
अस्तु, प्रस्तुत ‘रावणार्जुनीयम्’ काव्य भी अपनी विशिष्टता के कारण सम्पूर्ण संस्कृत वाङ्मय में अद्वितीय है। कवि ने काव्य के माध्यम से अष्टाध्यायी के क्रमानुसार सूत्रों के उदाहरण इस ग्रन्थ में प्रदर्शित किये हैं। इसी कारण क्षेमेन्द्र ने इसे ‘काव्यशास्त्र’ की संज्ञा दी है। कवि का यह कार्य वास्तव में अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है व उसके प्रतिभाभार का सूचक है। जिस पुनीत कर्तव्यभार को वहन कर कवि ने ग्रन्थ के काव्यत्व और शास्त्रत्व को सुरक्षित रखने में सफलता प्राप्त की है, निःसन्देह वह प्रशंसनीय है। कवि का इस काव्यरचना का उद्देश्य स्पष्ट ही ज्ञात हो जाता है। भट्टि के समान ही उसने किसी जिज्ञासु पाठक को काशिका के उदाहरणों का ज्ञान कराने के लिये यह काव्य रचा होगा, ऐसा प्रतीत होता है।
व्याकरणशास्त्र के ज्ञान के विना संस्कृत भाषा का ज्ञान अधूरा है, इस दृष्टि से प्रत्येक पाठक को अष्टाध्यायी के सूत्रों की जानकारी होनी आवश्यक है; क्योंकि अष्टाध्यायी की प्रक्रिया अत्यन्त वैज्ञानिक है। व्याकरणशास्त्र का महत्त्व तो सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं। चीनी यात्री इत्सिङ्ग अपनी भारतयात्रा में इसके सम्बन्ध में लिखता है- ‘यदि चीन के मनुष्य भारत में अध्ययन के लिये जायें तो उन्हें सबसे पहले (व्याकरण के) इस (अष्टाध्यायी) ग्रन्थ का अध्ययन करना पड़ता है, फिर दूसरे विषय। यदि ऐसा न होगा तो परिश्रम व्यर्थ जायेगा……’। पाणिनि की अष्टाध्यायी की प्रशंसा करते हुए मोनियर विलियम कहता है- ‘संस्कृत का व्याकरण (अष्टाध्यायी ग्रन्थ) मानव-मस्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम भाग है, जो कि मानव-मस्तिष्क के सामने आया है।’ इस प्रकार न जाने कितने ही विद्वानों ने व्याकरणशास्त्र (अष्टाध्यायी) की महिमा का वर्णन अपनी वाणी से किया है।
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