Ravi Shashthi (Chhath) Vrat Katha (रविषष्ठी छठ व्रत कथा) – 356
₹18.00
Author | Pt. Ramatej Pandey |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | - |
ISBN | 356-543-2392543 |
Pages | 16 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0173 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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रविषष्ठी (छठ) व्रत कथा (Ravi Shashthi Vrat Katha) कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पर्व मनाए जाने का विधान है। ये चार दिवसीय पर्व मुख्य रूप से बिहार में मनाया जाता है। यहां जानिए छठ की कहानी।
पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी संतान सुख से वंचित थे। इस बात से राजा-रानी काफी दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। महर्षि ने यज्ञ संपन्न करने के बाद मालिनी को खीर दी। खीर का सेवन करने के बाद मालिनी गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन दुर्भाग्य से उसका पुत्र मृत पैदा हुआ। ये देखकर राजा-रानी बहुत दुखी हो गए और निराशा की वजह से राजा ने आत्महत्या करने का मन बना लिया। परंतु जैसे ही टाजा आत्महत्या करने लगे तो उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई और उन्होंने कहा कि में षष्ठी देवी हूं और में लोगों को पुत्र सुख प्रदान करती हूं। जो व्यक्ति सच्चे मन से मेटरी पूजा करता है उसकी में सभी मनोकामना पूर्ण करती हूं। यदि राजन तुम मेरी विधि विधान से पूजा करोगे तो में तुम्हें पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान दूंगी। देवी के कहे अनुसार राजा प्रियव्रत ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी की पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप रानी मालिनी एक बार फिर से गर्भवती हुई और ठीक 9 महीने बाद उन्हें एक संदुर पुत्र की
प्राप्ति हुई।
कहते हैं तभी से छठ पर्व मनाए जाने की परंपरा शुरु हुड़ी इस पर्व से जुड़ी एक और कथा है जिसके अनुसार महाभारत काल में जब जुए में पांडव अपना सारा राजपाट हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। द्रौपदी के व्रत से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनका राजपाट वापस दिला दिया था। वहीं एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य देव की पूजा की थी और कहा जाता है कि घंटों पानी में खड़े होकर कर्ण सूर्य देव को अर्घ्य देता था। सूर्य देव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा चली आ रही है।
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