Roop Chandrika (रूप चन्द्रिका)
₹105.00
Author | Dr. Ramrang Sharma |
Publisher | Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Sanskrit |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 697 |
Cover | Paper Back |
Size | 9 x 3 x 12 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0110 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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रूप चन्द्रिका (Roop Chandrika)
येन धौता गिरः पुंसां विमलैः शब्दवारिभिः ।
तमश्चाज्ञानजं भिन्नं तस्मै पाणिनये नमः ॥
सुरभारती मां के सतत साधक आर्य, ऋषि-महर्षि, जैन-बौद्ध, सिख सम्प्रदाय के नानक पंथी निर्मल, नामधारी आदि विद्वानों तथा कतिपय विदेशी लोगों ने मुक्त कण्ठ से यह स्वीकार किया है कि संस्कृत भाषा विश्व की लगभग सभी भाषाओं की जननी है और इसका व्याकरण सर्वाङ्गीण एवं पूर्ण (Complete) है। ‘जागरूको भव’ का चिरन्तन सन्देश देने वाली इस गीर्वाण वाणी की संजीवनी का ही यह सुफल है कि हम दीर्घकाल तक विदेशी परतन्त्रता की श्रृङ्खलाओं में जकड़े रहने के बाद भी अपनी श्रुति-स्मृतियों का स्मरण, दर्शनों का दर्शन एवं पुराणों की प्राचीनता को बनाये रखने में सफल रहे हैं। भगवान मनु ने देवनागरी (ब्रह्मलिपि) में लिखी इस देवभाषा संस्कृत के सम्बन्ध में ही प्रकारान्तर से कहा है-‘यथा श्रुतं तथा दृष्टं सर्वमेव असा वद’ अर्थात् जैसा सुना और देखा है वैसे ही कहो।
अस्तु, संस्कृत भाषा के सौन्दर्य, सौकर्य्य, सौष्ठव को बनाये रखने के लिये ‘रूपचन्द्रिका’ चतुर-चकोर चेलों के माध्यम से गुरुकल्प मनीषियों के कर-कमलों में अर्पित है। इसके सम्पादन में त्रुटियों सम्भव है, करुणावरुणालय, गुणग्राही गुरुजन, हमारी भूल समझकर इनका समाधान करने की अनुकम्पा करेंगे। इस रूपचन्द्रिका के परिशिष्ट में-(क) शब्द रूपावली सूची, (ख) धातु रूपावली सूची, (ग) संख्यावाचक शब्द, (घ) कतिपय पारिभाषिक शब्द, (ङ) लिङ्गानुशासन एवं छात्रों के लिये (च) में प्रश्नावली दी गयी है। हमें विश्वास है कि इससे देश के भावि-कर्णधारों को लाभ होगा। हम कृतज्ज्ञ हैं अपने गुरुजनों, मित्रों के विशेषकर श्री राकेश जैन के जिन्होंने इसके प्रकाशन में तत्परता दिखाई है। यह रूपचन्द्रिका भारतीय संस्कृति, संगीत की साक्षात् मूर्ति, श्री सद्गुरु रामसिंह शोध पीठ के संस्थापक श्री सद्गुरु जगजीत सिंह महाराज (नामधारी दरबार, लुधियाना, पंजाब) को सादर समर्पित है।
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