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Sahitya Darpan (साहित्यदर्पणमः)

395.00

Author Acharya Shesraj Sharma Regmi
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2022
ISBN 978-81-218-0387-8
Pages 1057
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0632
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Description

साहित्यदर्पणमः (Sahitya Darpan) साहित्यदर्पणक विषयमें कुछ लिखनेके पहले हम “साहित्य” पदके विषयमें कुछ विचार करते हैं। “सहितस्य भावः कर्म वा साहित्यम्” इस व्युत्पत्तिसे सहित पदसे ष्यञ् प्रत्यय होकर “साहित्य” पद निष्पन्न होता है। इस प्रकार साहित्य पदका सामान्य अर्थ होता है सहितका भाव वा कर्म। यह हुआ इसका यौगिक अर्थ। परन्तु संस्कृत वाङ्मयमें “हितेन सहितौ शब्दाऽर्थी सहितौ, तयोर्भावः कर्म वा साहित्यम्” ऐसी व्युत्पत्तिसे पूर्ववत् ष्यञ् प्रत्ययसे यह पद योगरूढ हो जाता है। इस प्रकार साहित्यका अर्थ हुआ काव्य। राजर्षि भर्तृहरिने अपने नीतिशतक में-

“साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।

तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।।”

ऐसा लिखकर काव्यके अर्थमें साहित्य शब्दका प्रयोग किया है। इसी प्रकार महाकवि विह्नणने भी अपने विक्रमाङ्कदेवचरितकाव्यमें –

“साहित्यपाथोनिधिमन्थनोत्थं कर्णाऽमृतं रक्षत हे कवीन्द्राः!

यदस्य दैत्या इव लुण्ठनाय काव्याऽर्थचौराः प्रगुणीभवन्ति।”१-११

ऐसा लिखकर साहित्यका अर्थ काव्य ही मान लिया है। साहित्यदर्पणके रचयिता विश्वनाथ कविराजने भी इसी अर्थमें साहित्य शब्दका व्यवहार किया है। जैसे दर्पणसे मुखमण्डलका पूर्ण रूपसे दर्शन होता है उसी प्रकार साहित्यदर्पणसे हमें काव्यका लक्षण, काव्यशरीर – शब्द और अर्थ, अर्थबोधक अभिधा आदि वृत्तियां, रसधर्म प्रसाद आदि गुण, काव्य लक्षणमें घटित रस, रसाभास, भाव, ध्वनि और काव्यके भेद दृश्य और श्रव्य आदि, काव्यमें परित्याज्य श्रुतिकटु आदि दोष, पदसंघटना वैदर्भी आदि रीतियां, काव्यसौन्दर्य के आधायक शब्दाऽलङ्कार और अर्थाऽलङ्कार आदि, तन्मूलक संसृष्टि और संकर इत्यादि समस्त आलङ्कारिक विषयोंका आमूलचूड दर्शन मिलता है। अतः साहित्यदर्पण साहित्यका लक्षणग्रन्थ अर्थात् अलङ्कारशास्त्र वा साहित्यविद्या है। इसे आधुनिक संकेतके अनुसार “काव्यशास्व” भी कह सकते हैं। काव्यमीमांसाकार राजशेखरने भी “शब्दार्थयोर्यथावत्सहभावेन विद्या साहित्यविद्या” ऐसा लिखकर काव्यके अर्थमें साहित्यका सङ्केत कर “साहित्य- विद्या” पदसे अलङ्कारशास्त्रका निर्देश किया है। अंग्रेजीमें इसे रिटोरिक्स (Rhetorics) कहते हैं। अब “अलङ्कारशास्त्र” के विषयमें कुछ कहना आवश्यक हो गया है। “अलङ्करणमलङ्कारः” ऐसी व्युत्पत्तिसे “भावे” इस सूत्र से भाव में घञ् प्रत्यय होकर “अलङ्कार” शब्द साहित्यविद्याका वाचक होता है।”

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