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Sahitya Darpan Adarsh (साहित्यदर्पणादर्शः)

51.00

Author Pt. Shri Ram Govind Shukla
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Sanskrit
Edition 2014
ISBN -
Pages 144
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0618
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Description

साहित्यदर्पणादर्शः (Sahitya Darpan Adarsh) आजकल जगत के आरम्भ के पक्ष में दो मत हैं। एक तो जड़वादी दूसरा चेतनवादी। जडवादियों के मत में जगत् जड़ है चेतना उन्हीं जड़ों का परिणाम है। इनके मत में जब जैसी आवश्यकता पड़ी वैसे मानव रूप मी बदलते गए। आदि काल में संसार के अन्य प्राणियों की माँति मनुष्य भी मूक था। आवश्यकतानुसार उसने बोलना, गाना, लिखना, उठना, बैठना, रहन-सहन, रीतिरिवाज, धर्म, नीति आदि का क्रमिक विकास किया।

दूसरे पक्ष के लोग तो चेतन तत्त्व अलग मानते हैं। इनके पक्ष में कर्म के अनुसार चेतना ही भोगशरीर प्राप्त करती है बऔर उसी के द्वारा कर्म करके व्यक्ति मुक्ति प्राप्त करता है अथवा कर्म के अनुसार संसार में विभिन्न देहों और विभिन्न योनियों में घूमता है। इसने सर्व समर्थ चेतन सत्त्व भगवान् की कृपा से या उनके रचना-वैचित्र्य से ही बोलना, गाना, जाना तथा उसी की आदि रचना वेद का गान किया। इन दोनों पक्षों में मनुष्य ने बोलने के बाद जो कुछ किन्हीं परिस्थितियों में विलाप किया; चाहे वह करुणा या विप्रलम्म शृङ्गार के कारण, वही काव्य है।

काव्य-रचना को प्रचलित परम्परा में कुछ स्वतः रचित है और कुछ बलात् रचित काव्य हैं। बलात् रचित काव्यों में वह वस्तु नहीं रहतो जो स्वाभाविक होती है। अतः उनके लिए विभिन्न प्रकार के छन्दों के बन्धन तथा गुण रोति अलंकारों के विवेचन की आवश्यकता पड़ी। प्रायः ऐसे ग्रन्थों की रचना क्रमशः विकसित होती चली जिसकी अन्तिम तो नहीं किन्तु प्रारम्भ के लिए सरल सुबोध रचना ‘साहित्यदर्पण’ के रूप में कविराज विश्वनाथ ने की। अपनी सरलता और लगभग अन्तिम कृति के हो कारण यह ग्रन्थ आरम्भ के पाठ्य पुस्तकों में आया और परीक्षा परम्परा में प्रायः सर्वत्र समाहत हुआ। इधर विषय का कण्ठस्थ पूछना, लिखित परीक्षा लेना, लिखने की परम्परा को प्रोत्साहित न करना आदि अनेक दोषों के कारण छात्रों में स्वयं किसी कला का विकास नहीं हो रहा है। उन्होंने केवल समझने का प्रयत्न भी बन्द कर कापियों का रटना प्रारम्भ कर दिया। इन कारणों को देखकर मेरा ध्यान इधर गया। जिसमें एक सामान्य मोड़ लाने के लिए मैंने सरल और विस्तृत प्रश्नोत्तरी के रूप में ‘साहित्यदर्पणादर्श’ की रचना की जो थोड़े ही दिनों में लोगों के आदर का पात्र हुआ।

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