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Samudra Ratnam (सामुद्ररत्नम्)

170.00

Author Dr. Shri Kanta Tiwari
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2006
ISBN 81-87415-67-3
Pages 267
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0230
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Description

सामुद्ररत्नम् (Samudra Ratnam) “सामुद्रमङ्गलक्षणम्” अर्थात् मनुष्य के प्रत्येक अङ्गों के शुभ अशुभ लक्षणों का जिस शास्त्र से ज्ञान हो उसे सामुद्रिकशास्त्र कहते हैं। वाराहमिहिर ने बृहत्संहिता नामक ग्रन्थ में कहा है –

“उन्मानमानगतिसंहतिसारवर्णस्नेहस्वरप्रकृतिसत्त्वमनूकमादौ।
क्षेत्रं मृजां च विधिवत्कुशलोऽवलोक्यसामुद्रविद्वदति यातमनागञ्च”।।

अर्थात् ऊँचाई, वजन (तौल), गति, प्रत्येक अङ्ग की सन्धियों की सुश्लिष्टता, सार, वर्ण, स्नेह, स्वर, प्रकृति, सत्त्व, अनूक (पूर्वजन्म) क्षेत्र, दशविधपादादि के (लक्षण), मृजा (पञ्चभूतमयी शरीरछाया) इन सबका सामुद्रिकशास्त्र जाननेवाला चतुर पुरुष विचार करके मनुष्य के अतीत तथा भविष्य के शुभ अशुभ फलों को कह सकता है। सामुद्रिकशास्त्र बहुत ही कठिन एवं गहन है। यह भारतवर्ष की अति प्राचीन विद्या है तथा पाश्चात्य देशों में भी यह विद्या यहीं से गई है। विविध कारणों से सामुद्रकशास्त्र का भारत से लोप सा हो गया एवं इस विषय की अच्छी-अच्छी पुस्तके प्रायः अप्राप्य है। इस पुस्तक (सामुद्ररत्नम्) की उपयोगिता के विषय में अधिक कहना सूर्य को दीपक दिखाना है। यदि यह पुस्तक गुरुजनों से पढ़कर जानकारी एवं अनुभव प्राप्त कर लें तो फलादेश बहुत ठीक उतरते हैं।

जन्म समय के हेरफेर होने से कुण्डली के फल भले ही न मिले परन्तु हाथ की रेखाओं, ललाट, पैर आदि की रेखाओं तथा शरीर के अङ्गो के जो शुभाशुभ लक्षण प्रतीत होते हैं वह कदापि मिथ्या नहीं हो सकते। इस पुस्तक में पुरुषों एवं स्त्रियों के (पाद, जंघा, रोम आदि) लक्षण एवं फल. स्कन्दपुराण में वर्णित खीलक्षण, स्त्रीपुरुष के हस्तरेखा परीक्षण, नर-नारी के पैर आदि अंगों के लक्षण, हाथ से ग्रहों का विचार, मेषादि राशियों का ज्ञान, ललाटादि देखकर पुरुष एवं श्री के शुभाशुभ फलों का विचार है।

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