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Sandhya Vidhi (सन्ध्या विधि)

15.00

Author Dr. Chaman Lal Gautam
Publisher Sanskriti Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2015
ISBN -
Pages 40
Cover Paper Back
Size 12 x 2 x 17 (l x w x h)
Weight
Item Code SS0005
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Description

सन्ध्या विधि (Sandhya Vidhi) हिन्दू धर्म के मतानुसार सृष्टि रचना का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था। इसीलिए हमारा वर्ष इसी दिन से शुरु होता है जिसका पूर्वार्द्ध छः मास आश्विन कृष्णा अमावस्या को समाप्त होता है और उत्तरार्द्ध भाग आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होता है। वर्ष के इन भागों के आरम्भ में हमारे पूर्वज महाशक्ति की आराधना किया करते थे। इन्हीं दिनों सर्दी-गर्मी की ऋतुओं का मिलन होता है। इसी सन्धि-वेला को नवदुर्गा कहा जाता है।

सर्दी-गर्मी की ऋतुओं के मिलन की तरह दिन और रात्रि के मिलन को संध्याकाल कहते हैं। यह समय पूजा, उपासना और आत्म साधन के लिए बहुत ही उपयोगी माना जाता है, क्योंकि सूक्ष्म दृष्टि से देखने से पता चलता है कि इस समय किया गया थोड़ा श्रम भी अधिक लाभदायक होता है। इस समय नवीन शक्तियों का प्राकट्य होता है। इसलिए इस समय ईश्वराराधना को ही विशेष रूप से महत्ता दी गई है और अन्य कार्य जैसे कि भोजन करना, सोते रहना, यात्रा आरम्भ करना, मैथुन करना आदि वर्जित माने गये हैं, क्योंकि इस संध्या के समय इन कार्यों को करने से हानि होती देखी गई है। यही नियम ऋतुओं की सन्धि नवरात्रि पर भी लागू होता है। ऋतुओं के सन्धिकाल में विशेष शक्तियाँ प्राप्त करने के लिए अनुष्ठान आदि विशेष साधनाओं की व्यवस्था की गई है।

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