Sarvanukramani (सर्वानुक्रमणी)
₹521.00
Author | Dr. Rajendra Nanavati |
Publisher | Bharatiya Vidya |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-93-95392-08-2 |
Pages | 236 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0224 |
Other | Dispatched in 3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
सर्वानुक्रमणी (Sarvanukramani) वेदों के अध्ययन में सहायक छः वेदांगों के उपरान्त प्रचीन वैदिक साहित्य में अनुक्रमणी साहित्य का एक विशिष्ट वर्ग था जिसमें वेद संहिताओं के विविध अंगों सूक्तप्रतीक, सूक्तों के ऋषि मंत्र संख्या, प्रतिमंत्र देवता, छंद-इत्यादि की छंदोबद्ध सूचियाँ बनायी जाती थीं। इस प्रकार की ऋग्वेदविषयक सभी अनुक्रमणियों की सामग्री को संकलित कर कात्यायन ने ईसा पूर्व चौथी शती में सर्वानुक्रमणी की रचना की।
कात्यायन की (ऋग्वेद) सर्वानुक्रमणी प्राचीन वैदिक साहित्य का एक प्रसिद्ध, महत्त्वपूर्ण एवं मानक निर्देशग्रंथ (Reference Work) है। ऋग्वेद के मण्डल, मण्डलान्तर्गत सूक्त के कुल एवं प्रत्येक मंत्र के छंद और देवता इत्यादि सभी अंगों के सुनिश्चित निर्धारण के लिये इस ग्रंथ को सर्वत्र आधारभूत प्रमाण माना गया है। ऋग्वेद के अध्ययन के लिये सहायक ग्रंथ के रूप में इस ग्रंथ का होना अनिवार्य है
इस मानक ग्रंथ के ऊपर इसकी बारहवीं शती में सामान्य विद्वान् वेदाचार्य षड्गुरुशिष्य ने वेदार्थदीपिका नाम से अति उपयुक्त व्याख्या रची। इन दोनों ग्रन्थों का पाण्डुलिपियों सम्मेलन से अत्यन्त परिश्रमपूर्वक पाठ संपादन करके उसे कई उपयुक्त सूचियों के साथ आज से शताब्दिक पूर्व अर्वाचीन वेदविद्या के सूक्ष्म अभ्यासी पाश्चात्य पंडित प्रो० मैकडोनल ने ओक्सफोर्ड से प्रकाशित किया था। यह प्रकाशन स्वयं भी पाठसंपादन का एक उत्तम उदाहरण है। इधर कई दशकों से यह ग्रंथ वेदविद्या के जिज्ञासु अभ्यासियों के लिये अप्राप्य था इसे अब यहाँ हिन्दी अनुवाद के रूप में वेदप्रेमियों के लिये प्रस्तुत किया गया है।
Reviews
There are no reviews yet.