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Raghuvansha Mahakavyam 6-7 Sarg (रघुवंशमहाकाव्यम् 6-7 सर्गात्मक)

115.00

Author Pt. Shri Jitnedra Acharya
Publisher Bharatiya Books
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2023
ISBN 978-93-92974-06-9
Pages 46
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0223
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Description

रघुवंशमहाकाव्यम् ६-७ सर्गात्मक (Raghuvansha Mahakavyam 6-7 Canto) कविकुलशिरोमणि महाकवि कालिदास द्वारा विरचित ‘रघुवंशमहाकाव्यम्’ संस्कृत वाङ्मय की अनुपम निधि है। उसी महाकाव्य का द्विसर्गात्मक अंशभूत प्रकृत ग्रन्थ अपने कतिपय वैशिष्ट्य के कारण संस्कृत के अध्येताओं, छात्रों को रसानुभूति कराने में पूर्ण समर्थ है। कथा की दृष्टि से इस महाकाव्य के दोनों सर्गों में अद्वितीय सुन्दरी राजकुमारी इन्दुमती का स्वयंवर आयोजन, इन्दुमती को प्राप्त करने की इच्छा से वहाँ उपस्थित विविध देश के राजाओं का वर्णन, इन्दुमती द्वारा राजकुमार अज का वरण, उन दोनों का वैदिक विधि से विवाह, तत्पश्चात् इन्दुमती के साथ राजकुमार अज का अपनी राजधानी के लिए प्रस्थान, मार्ग में इन्दुमती को न प्राप्त करनेवाले विद्वेषी राजाओं की सेना से युद्ध तथा युद्ध में उन्हें परास्त कर अपनी राजधानी अयोध्या आगमन, अयोध्या में महाराज रघु द्वारा उनका स्वागत आदि घटनाओं का स्वाभाविक, काव्यात्मक और कलात्मक वर्णन पाठकों को आकर्षित करता है।

इस ग्रन्थ में महाकवि ने अपनी सूक्ष्मेक्षिका दृष्टि से मानवीय अन्तःकरण में अन्तर्हित भावों, संवेदनाओं को जैसी सरस और सौन्दर्यपूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान की है, वह सहृदयों को चमत्कृत कर आनन्दित करने वाला है। रसात्मक अनुभूति, आनन्द संप्राप्ति अथवा सद्यः परनिवृत्ति ही काव्य का मूल प्रयोजन काव्यशास्त्र के आचार्यों ने स्वीकार किया है। प्रत्येक घटना का कलात्मक एवं काव्यात्मक चित्रण कालिदास की अलोकसामान्य प्रतिभा तथा अद्भुत कल्पनाशक्ति को द्योतित करता है। भाषागत सरलता, स्निग्धता और माधुर्य के साथ ही ‘उपमा’ अलंकार का रमणीय संयोजन, जिसके लिए कवि की प्रसिद्धि है, आद्योपान्त पाठकों को रससिक्त करता है। सुधी सहृदय पाठक एवं छात्र इसका अध्ययन कर काव्यरस का आस्वादन करें। काव्यगत शिल्प, एवं अनुराग, करुणा, विद्वेष, उत्साह, और औत्सुक्य आदि भावों की सुमधुर अभिव्यक्ति के कारण ही इस ग्रन्थ को कई महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रम में स्थान दिया है।

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