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Setubandha Mahakavyam (सेतुबन्धमहाकाव्यम)

361.00

Author Pt. Ramnath Tripathi Shastri
Publisher Chaukhambha Krishnadas Academy
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2002
ISBN 81-218-0089-7
Pages 720
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0638
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Description

सेतुबन्धमहाकाव्यम (Setubandha Mahakavyam) इस प्रस्तुत महाकाव्य का नाम ‘रावणवध’ अथवा ‘दशमुखबध’ है, क्योंकि ग्रन्थसमाप्तिपरक स्कन्धक में ‘रावणवध’ और प्रत्येक आश्वास की समाप्ति पर ‘दहमुहबह’ (दशमुखवध) नाम निदिष्ट किया गया है-

‘एत्थ समप्पइ एवं सीतालम्भेण जणिअरामन्भुअअम् । रावणवह त्ति कव्वं अणुराअङ्कं समत्यजणणिव्वेसम् ।।

[ अत्र समाप्यत एतत् सीतालम्भेन जनितरामाभ्युदयम् । रावणवध इति काव्यमनुरागाङ्क समस्तजननिद्वेषम् ॥ ] ( सेतुबन्ध, १५०६५)

‘इभ सिरिपवरसेणविरइए दहमुहवहे (इति श्रीप्रवरसेनविरचिते दशमुखबधे)’। आचार्य दण्डी ने अपने काव्यादर्श नामक ग्रन्च में इसी महाकाव्य का दूसरा नाम ‘सेतुबन्ध’ दिया है-

‘महाराष्ट्राथयां भाषां प्रकृष्टं प्राकृतं विदुः । सागरः सूक्तिरत्नानां सेतुबन्धादि यन्मयम् ।।’ ( काब्पादणं, १-३४)

काव्य-जगत् में यह महाकाव्य ‘सेतुबन्ध’ नाम से ही प्रसिद्ध है। प्रस्तुत महाकाव्य के प्रथम और द्वितीय आश्वास के अन्त में समाप्तिपरक वाक्यांश है-‘इन सिरिपवरसेणविरइए दहमुहबहे महाकब्वे (इति श्रीप्रवरसेन- बिरचिते दशमुखवधे महाकाव्ये)। शेष तीसरे आश्वास से अन्तिम पन्द्रहवें आश्वास तक के प्रत्येक आश्वास के समाप्तिपरक वाक्य में ‘कालिदासकए (कालिदासकृते)’ इतना और यथास्थान जुड़ा हुआ है।

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