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Shiva Sutra Vimarsh (शिवसूत्र विमर्श)

208.00

Author Jankinath Koul Kamal
Publisher Motilal Banarasidass
Language Hindi & Sanskrit
Edition 1964
ISBN 978-81-208-2769-1
Pages 82
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code MLBD0152
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Description

शिवसूत्र विमर्श (Shiva Sutra Vimarsh) त्रिकशासन के अनुसार शिवसूत्र आगम शास्त्र का बहुत ही आवश्यक अंग है। इं’ तदर्शन से अधिवासित इस जीवलोक में अद्वैत-दर्शन के रहस्यसम्प्रदाय का विच्छेद न होने अपितु इसका पुनरुत्यान करने के लिए ही इन सूत्रों का आविर्भाव हुआ था। भगवान् शिव से प्रेरित भट्ट कल्लट के गुरु आचार्य बसुगुप्त द्वारा इन सूत्रों का प्रचार ईसा की आठवीं-नौवीं शताब्दी में कश्मीर में हुआ। इस अर्द्धत शास्त्र की महत्ता को जानकर ही इस पर ‘विशिनी’ नाम की संस्कृत टीका के लेखक क्षेमराज ने इसे ‘शिवोपनिषत्-संग्रह’ का नाम दिया था।

यद्यपि ‘शिवसूत्र’ के यह ७७ सूत्र शैवागम के अनुसार तोन उपायों में बांटे गए हैं तथापि भगवत्पाद ईश्वरस्वरूप श्रीस्वामी लक्ष्मण जू के आशीर्वादात्मक आामुख के अनुसार ‘साधक जन के उपयोग की सम्भावना शाक्तोपाय पर ही निर्भर है। अतः विश पाठक-जन का ध्यान इस बात की ओर आकृष्ट करना आवश्यक है कि स्पन्द- शाखा शाक्तोपाय के अन्तर्गत ही मानी गई है। साधारण साधक के लिए यही उपाय सुलम है।

पन्द्रह्वों शताब्दी तक शिवसूत्र पर संस्कृत में एक वृत्ति, दो वात्तिक और एक टोका लिखी गई। यद्यपि आधुनिक काल में भी इस ग्रन्यविशेष के हिन्दी और अंग्रेजी में व्याख्या तथा अनुवाद छप चुके हैं तथापि अद्वैत शैव दर्शन में पारंगत, पुरन्धर विद्वान् और सफल योगी श्रीस्वामी लक्ष्मण जू ने शिवसूत्र पर इस ‘विमर्श’ नाम की हिन्दी टीका को ‘साधकन्जन के अवगाहनार्थ सरल तथा सुबोध’ बताकर सराहा है। तभी तो भक्त जन और विचारक-वर्ग के समक्ष इसे प्रस्तुत करने का साहस किया जा रहा है। विनीत लेलक ने इन सूत्रों पर, कई वर्ष पूर्व श्रीस्वामीजी महाराज के चरण कमलों के समक्ष बैठकर विचार किया था। फिर जब इस ‘शिवसूत्र विमर्श’ की पाण्डु- लिपि को भगवत्पाद के सामने रखा तो इसका आद्योपान्त अवलोकन कर उन्होंने हर्ष पूर्वक इसे मुद्रण में लाने की इच्छा प्रकट की। अतः “तवैव वस्तु गोविन्द तुम्यमेव समर्पये”।अन्त में आशीर्वादात्मक धन्यवाद के पात्र हैं श्री ओं प्रकाश कोल जिन्होंने प्रेमपूर्वक, शुद्ध और स्वच्छ ढंग से प्रेस कापी तैयार की, और अनुपम कौल जिसने दक्षता से पुस्तक का पुनरवलोकन किया। उन सज्जनों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है जिनके सफल परामर्श से यह यज्ञ सम्पन्न हुआ। नैवेद्य साधक तथा पाठक-जन के हाथ में है।

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