Shree Vidya Sadhana Set of 2 Vols. (श्री विद्या साधना 2 भागो में)
₹550.00
Author | Aacharya Hariom Shukla Shastri |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2nd edition 2012 |
ISBN | - |
Pages | 791 |
Cover | Hard Cover |
Size | 21 x 5 x 13 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0028 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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श्री विद्या साधना 2 भागो में (Shree Vidya Sadhana Set of 2 Vols.) श्री कुल की उपासना पद्धति यद्यपि अनेक विधि से प्रकाशित प्राप्त होती है। तथापि जिज्ञासु साधकों के लिए सूक्ष्म क्रम अनुपलब्ध होने तथा वेदादि शास्त्र सम्मत् पद्धति की परमावश्यकता रही है। इस सन्दर्भ में देश में छपी हुई अनेक पद्धतियों को देखने और तंत्रराज श्री विद्यार्णव वामकेश्वर कुलार्णव श्री विद्या आह्निक आदि ग्रंथों को अच्छी प्रकार मनन करने तथा आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित्व चारों पीठों का निरीक्षण करते हुए परशुराम कल्प सूत्रनुसार ही तथा त्रिपुरा रहस्य क्रमोक्त यह पद्धति प्रकाशित की गई है। विशेषकर मद्रास मैलापुर की श्री विद्या विमार्शिनी गुहानन्द मंडली के द्वारा प्रकाशित पद्धति विशेष सहायक रही है। आशा है उपासक जिज्ञासु बन्धु सूक्ष्म इस क्रम से लाभान्वित होकर उपासना पथ में अग्रसर होंगे ऐहिक पारलौकिक श्रेय तथा निः श्रेयस की प्राप्ति एक मात्र श्री विद्या की उपासना से होती है।
श्री विद्या साधना आध्यात्मिक साधना की अत्यन्त महत्वपूर्ण पद्धति है। श्री विघा के साधक को भोग एवं मोक्ष दोनों समान रूप से उपलब्ध होते हैं। यत्रास्ति भोगों न-तत्र-मोक्ष यत्रास्ति मोक्षः न तत्र भोगः सुरसुंदरी पूजन तत्पराणाम् भोगश्चमोश्चश्च करस्थ एव (कहा जाता है कि जिनकी उपासना से भोग प्राप्त होता है, उसी उपासना से मोक्ष प्राप्त नहीं होता है, तथा जिनकी उपासना से मोक्ष प्राप्त होता है, उनकी उपासना से भोग प्राप्त नहीं होता है, किन्तु सुरसुन्दरी भगवती राजराजेश्वरी पराम्बा, जगदम्बा, त्रिपुरसुन्दरी की उपासना से भोग और मोक्ष दोनों करस्थ हो जाते हैं।)
दशमहाविधाओं में भगवरी बाला त्रिपुर सुंदरी का अप्रतिम स्थान है परशुराम कल्पसूत्र में श्री विधा साधना के चर्या खंड का विवरण सांगोपांग रूप से उपलब्ध है। श्री विधा साधना पद्धति के तीन खंड ज्ञान खंड, चर्याखंड एवं माहात्म्य खंड में से केवल ज्ञान खंड एवं माहात्म्य खंड ही वर्तमान में उपलब्ध है। चर्याखंड के रूप में परशुराम कल्प सूत्र में साधन मात्र का विवरण प्राप्त है। उसी परशुराम कल्पसूत्र के अनुसार यह पुस्तक दो भागों में प्रकाशित की जा रही है। इसके प्रथम भाग में “श्री विद्यानिांचन सपर्या पद्यति” तथा “ललिता सहस्रनाम एवं सौन्दर्य लहरी” तथा दूसरे भाग में “श्री विद्याखडगमाला साधना” एवं “श्रीमहागणपति तर्पण विधान” संकलित है। इससे यदि साधकों का किंचित मात्र हित होगा तभी इस ग्रंथ का साफल्य होगा।
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