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Shri Ram Charitamanas Sat Panch Chaupai (श्री रामचरितमानस सत पंच चौपाई)

40.00

Author Prof. Amal Dhari Singh
Publisher The Bharatiya Vidya Prakashan
Language Hindi
Edition 2023
ISBN -
Pages 22
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0423
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Description

श्री रामचरितमानस सत पंच चौपाई (Shri Ram Charitamanas Sat Panch Chaupai) भगवान् श्रीरामचन्द्र की सहज अतिशय कृपा से सनातनी भारतीय संस्कृति के संरक्षक गोस्वामी तुलसीदासविरचित श्रीरामचरितमानस की सुप्रसिद्ध सत पंच चौपाई का यह संकलन भगवद्भक्तों की सेवा में समर्पित करते हुए अतीव आत्मतोष एवम् आनन्द की अनुभूति कर रहा हूँ। इस प्रकार के अनेक संकलन प्रकाशित हुए होंगे। रामसरन खण्डेलवाल, रामनाथ खण्डेलवाल एण्ड सन्स, कानपुर द्वारा प्रकाशित संकलन विशेष रूप से उल्लेखनीय है, पर कोई भी संस्करण मुझे सुलभ न हो सका। बहुत समय पहले की बात है, दिल्ली से जोधपुर के लिए जोधपुर मेल से यात्रा करते समय मैं उत्तर रेलवे के अधिकारी श्रीरामभक्त श्रीयुत पं० शिवानन्दद्विवेदी का सहयात्री रहा। प्रातःकाल अपने पूजन क्रम में वह इन चौपाइयों का सरस मधुर गान कर रहे थे। जब उन्होंने पूजन सम्पन्न कर लिया तब मैंने उनसे इनके पुनः पारायण हेतु सविनय निवेदन किया। पुस्तक उनके पास न थी। उनके श्रीमुख से सुनकर मैंने चौपाइयों के आदिभाग को नोट कर लिया। यात्रा से लालगंज आ जाने पर इन चौपाइयों को श्रीहनुमान चालिसा जैसी लघु गुटिका में गुम्फित करने का संकल्प किया। सुयोग ही था कि उस समय संस्कृत विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की विद्याप्रवीणा पी- एच०डी० की शोधच्छात्रा मेरी ‘भांजी रेखासिंह लालगंज प्राचार्य आवास पर रहकर अपना शोधकार्य कर रही थीं। मेरे अनुरोध पर इन्होंने मूलग्रन्थ से मिलान करके सन्दर्भ सहित यह लघुग्रन्थ तैयार कर दिया, दीपमालिका विक्रम संवत् २०४१, शुक्रवार दिनांक ४.११.१९८३। पर न जाने कैसे इसका प्रकाशन नहीं हो पाया।

यह हस्तलिखित कृति सुरक्षित रही और इतने समय के अन्तराल पर श्रीरामजी की इच्छा से ही यह प्रकाशित हो रही है। सर्वहितकारिणी पञ्चवटी संस्था का संरक्षण सुलभ हो गया, मेरे चिर संकल्पित अभीष्ट को संस्था ने अपना संकल्प बना लिया। तदनु परमपूज्य महामण्डलेश्वर श्रीपीठाधीश्वर श्रीश्री १००८ दण्डी स्वामी परमात्मबोधाश्रमजी महाराज नारायणकुटी गहरौली का मङ्गल आशीर्वचन मिल गया। स्वामीजी महाराज सनातनी संस्कृति के तो संरक्षक ही है। फलस्वरूप लोककल्याणकारिणी अपनी महिमा को उजागर करने वाली इस कृति के प्रकाशनार्थ प्रभुश्रीराम अनुमति प्रदान कर दी और प्रेस यन्त्रालय ने इसको मूर्तरूप प्रदान कर दिया। जन-जन को जगाते हुए सर्वरक्षात्मक पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक विद्याधनी डॉ० महादेव सिंह जी तथा संस्था परिवार के सभी महानुभावों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा हूँ उनका महान् व्रत व्यापक सुफल होता रहे तथा सम्पूज्य स्वामी महाराज जी के प्रति भक्तिभाव समर्पित है। द भारतीय विद्या प्रकाशन के यशोधनी स्वत्वाधिकारी श्री राकेश जैन जी तथा इनके कर्मठ प्रकाशन कर्मकुशल आत्मज रवीश व रजत अत्यन्त प्रशंसनीय है इनके सुयश में बराबर वृद्धि होती रहे। उत्कृष्ट ग्रन्थों का प्रकाशन करते रहें। इस अवसर पर मैं पं० द्विवेदी जी के प्रति बहुत-बहुत कृतज्ञताभाव ज्ञापित कर रहा हूँ तथा संकलनकी रेखा सिंह के मनोरथों को भी श्रीभगवान् पूरा करते रहें, सर्वकल्याणकारिणी इस कृति को इन्होंने बड़े ही मनोयोग-भक्तिभाव से पूरा किया था।

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