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Shri Yoga Chintamani Aur Vyavahar Jyotish (श्रीयोगचिन्तामणिः और व्यवहार ज्योतिष)

191.00

Author Dr. Rajeshwar Shastri, Dr. Subham Sharma
Publisher Chaukhambha Sanskrit Sansthan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2021
ISBN 978-81-89798-87-1
Pages 202
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0598
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Description

श्रीयोगचिन्तामणिः और व्यवहार ज्योतिष (Shri Yoga Chintamani Aur Vyavahar Jyotish) श्री योगचिन्तामणिः फलितज्योतिष में विद्यमान योगों का संकलनग्रन्थ हैं। यह ग्रन्य श्री नाना जोशी के सुपुत्र ज्योतिर्विद् वामन जोशी के द्वारा रचित है। अनुभूतिप्रदशास्त्र को रचना के लिए जिस विशद अनुभूति को आवश्यकता होती है वह इस ग्रन्थ में दृग्- गोचर है। श्री वामन जोशी अनुभवी, लोकप्रसिद्ध, सिद्ध और संस्कृत वाङ्मय के अनेक विधाओं के दक्ष विद्वान् गणक है। ज्योतिषशास्त्र में जितनी संख्या भावजग्रन्थों की है उतनी संख्या योगज अन्यों को नहीं है अतः यह ग्रन्थ योगज ग्रन्थों में जातकालंकार की तरह ख्याति लब्धता की योग्यता को रखता है। इस ग्रन्थ में योगों के नाम और गुणानुरूप उनकी संज्ञा आश्चर्यचकित कर देने वाली है। इस ग्रन्थ को पढ़ने के बाद मेरे मन में एक सुखद अनुभूति की उत्पत्ति हुई जिसमें यह परितोष था कि बहुत दिनों के बाद एक अन्य पढ़ने को मिला जिसमें जिज्ञासु मन को कुछ नया अनुभव करने हेतु पाथेय है। अन्यकार अत्यन्त सधे सारस्वत पुरुष है जिन्होंने विषयवस्तु को बिना किसी उपक्रम के मंगलाचरण के बाद प्रस्तुत किया है। गणेश, ब्रह्म, विष्णु, महेश, श्री सूर्यादिनवग्रह और अपने इष्टदेवता श्रीहरि (विष्णु) को प्रणाम करते उन्होंने समस्त ज्योतिषशास्त्रविदों के प्रसत्रार्थ इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इस ग्रन्थ को पढ़ने के बाद बुधजनों को वही प्रसत्रता मिलती भी है जिसके लिए ग्रन्थकार ने देवों का स्मरण किया है।

योगज ग्रन्थों की कमी के कारण भविष्य वक्ता ज्योतिषी को विशेष परेशानी होती है। लोक में ख्याति अर्जित करने के लिए फलित ज्योतिष की सूक्ष्म प्रवृत्तियों पर पैनी पकड़ होनी चाहिए और यह पैनापन, श्रुतपारदृश्वा दृष्टि योगज प्रन्चों के द्वारा ही आती है। अतः योगज ग्रन्थों के प्रति भविष्यद्रष्टा और भविष्यवक्ता ज्योतिषी ज्यादा आदर का भाव रखता है। योगज ग्रन्थों में बहुत विस्तार और व्याख्यान की संभावना नहीं होती है। अतः सभी योगज अन्य आकार में लघुकलेवर ही होते हैं, पर उनकी उपादेयता और गुणवत्ता चमत्कारसिद्ध होती है। ज्योतिषी को बाध्य करती है कि वह उस ग्रन्थ का अध्ययन और मनन करे। योगज ग्रन्थ की दूसरी बड़ी विशेषता होती है कि वह विषय की परिभाषा और संज्ञा दो प्रस्तुत करता है जिसके सन्दर्भ में भावज ग्रन्थों में अधिक स्पष्ट नहीं लिखा होता है। उदाहरण के रूप में भाग्येश यदि केन्द्र में होता है तो भाग्य प्रबल होता है। इस तथ्य का उल्लेख भावज प्रन्थों में होता है, पर योगज ग्रन्थ इस योगविशेष को ‘चन्द्रचूड’ योग की संज्ञा देता है। साथ ही यह प्रतिपादित करता है कि चन्द्रचूड योग में उत्पन्न होने वाला व्यक्ति दानी और गुणी होता है-

चन्द्रचूडो भवेद्योगो धर्मपो यदि केन्द्रगः ।

योगेऽस्मिन् दानशीलश्च गुणपूणों भवेन्नरः ।।

इससे स्पष्ट है कि चन्द्रचूड योग में उत्पत्र व्यक्ति धनी समृद्ध होगा तभी वह दान देने की क्षमता से युक्त होगा। यदि किसी के पास धन हो और वह बद्धमुष्टि हो तो चन्द्रचूड योग नहीं होगा। दान वही देता है जो दान देने के महत्त्व को जानता हो और सामने वाले ग्रहीता का गुण पारखी हो। अतः योगज अन्य इस दृष्टि से भावज अन्यों से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।

योगज ग्रन्थ की तीसरी बड़ी विशेषता होती है कि इसमें योगों के नाम और उनका प्रभाव वर्णित रहता है जिसे श्लोकबद्ध लिखा गया होता है। भविष्यवक्ता इन श्लोकों को याद रखता है और तत्काल इस तथ्य को प्रस्तुत करता है जब वह कुण्डली देखता है। ये तीनों विशेषताएँ योगज ग्रन्थों को महनीय बनाती हैं और ज्योतिषशास्त्र के विद्यार्थीजनों के लिए इन ग्रन्थों को आवश्यक पठनीय के रूप में उपस्थित करती है।

योगचिन्तामणि अन्य में शताधिक सुन्दरयोगों का प्रतिपादन है। ये योग विषय की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व के हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी योग हैं जिनका प्रतिपादन अन्य महत्त्वपूर्ण फलितग्रन्थों में पहले भी हो चुका है। यह ग्रन्थ इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें अनुभवी गणक ‘नाना जोशी’ और उनके पुत्र ग्रन्थकार ‘वामन जोशी’ के स्व अनुभव भरे पड़े हैं। एक सौ एकसठ श्लोकों में वर्णित ‘योगचिन्तामणि’ ग्रन्थ में एक श्लोक मंगलाचरण के लिए तथा तीन श्लोक पूर्वजवर्णन में लिखे गये हैं। विषय से सम्बन्धित एक सौ सत्तावन श्लोक इसमें उपनिबद्ध हैं, जिनमें शताधिक महत्त्वपूर्ण योगों की स्थापना है।

 

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