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Shrimad Bhagwat Rahasya (श्रीमद् भागवत रहस्य) – 127

490.00

Author Shri Ramchandra Dongari Ji Maharaj
Publisher Rupesh Thakur Prasad Prakashan
Language Hindi
Edition 2017
ISBN 129-542-2392546
Pages 840
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0183
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Description

श्रीमद् भागवत रहस्य (Shrimad Bhagwat Rahasya)

श्रीसच्चिदानन्दघनस्वरूपिणे कृष्णाय चानन्तसुखाभिवर्षिणे।
विश्वोद्भवस्थाननिरोधहेतवे नुमो वयं भक्तिरसाप्तयेऽनिशम् ।।

उन भगवान् श्रीकृष्ण को हम भक्तिरस का आस्वादन करने के लिए नित्य-निरन्तर प्रणाम करते हैं। ‘विद्यावतां भागवते परीक्षा’ यह कहावत प्राचीन काल से विद्वत्समाज में प्रचलित है। विद्वानों की चूड़ान्त विद्या की परीक्षा श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वारा हुआ करती थी। कहते हैं कि अनेक पुराणों और महाभारत की रचना के उपरान्त भी भगवान् व्यासजी को परितोष नहीं हुआ। परम आह्लाद तो उनको श्रीमद्भागवत के प्रणयन और संगायन के पश्चात् ही हुआ, कारण कि भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र इसके कुशल कर्णधार हैं जो इस असार संसार-सागर से सद्यः सुख-शान्ति पूर्वक पार करने के लिए सुदृढ़ नौका स्वरूप है।

इस ग्रन्थ के पठन-पाठन, श्रवण, मनन एवं चिन्तन से मनुष्य की अविद्यारूपी सभी भ्रान्तियों की समाप्ति के साथ ही शीघ्र शाश्वती शान्ति की भी प्राप्ति होती है, इसमें किञ्चिन्मात्र संशय नहीं। इसे प्रेमाश्रुसिक्त नेत्र, गद्गद्-कण्ठ, द्रवित चित्त एवं भावसमाधि-निमग्न परम-रसज्ञ श्रीशुकदेवजी के मुख से उद्‌गीत होने पर पद-पद से अमृत झर उठा – ‘शुकमुखादमृत-द्रवसंयुतम्।’ और यह ‘अर्वाचीन शुक’ परम आदरणीय श्रीडोंगरेजी महाराज ने प्रस्तुत ‘श्रीमद्भागवत रहस्य’ के द्वारा भागवत की दुरुहता को विविध दृष्टान्तों द्वारा अत्यन्त सरल, सुगम, रोचक एवं शिक्षाप्रद बनाकर भक्तजनों का बहुत बड़ा कल्याण किया है।

प्रस्तुत ग्रन्थ ‘श्रीमद्भागवत कथा’ के नाम से गुजराती भाषा में प्रकाशित था। उसी का हिन्दी भावानुवाद यह ‘श्रीमद्भागवत-रहस्य’ है। इसके अनेकानेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं जो सर्वाधिक लोकप्रियता के प्रमाण है। जबकि ‘श्रीमद्भागवत’ के कथावाचकों के लिए मोटे अक्षर में, पत्राकार, साँची सजिल्द, सरल-सुबोध तथा भावगम्य हिन्दी टीका, संस्कृत टीका एवं मात्र हिन्दी अनुवाद के भी कई संस्करण छप चुके हैं। भाषा और शैली का असाम्य भी स्पष्ट लक्षित होता है। जो लोग संस्कृत से सर्वथा अनभिज्ञ हैं एवं श्रीमद्भागवत के सारगर्भित भाव को हिन्दी भाषा में पढ़ने की विशेष रुचि है, ऐसे लोग परम श्रद्धेय पूज्यपाद श्रीडोंगरेजी महाराज की भाव-विभोर पीयूषवर्षिणी कया का आस्वादन अधिक-से-अधिक सुविधापूर्वक कर सकें, इस पवित्र भावना से ही हमने मोटे अक्षरों में, सर्वांग सुन्दर छपाई-सफाई के साथ यह पुस्तक प्रकाशित किया है। जिसे बड़े-वृद्ध एवं कम पढ़ी-लिखी महिलाएँ भी आसानी से पढ़ सकें। प्रस्तुत पुस्तक का ऐसा सर्वोत्तम संस्करण अब तक अन्यत्र कहीं से भी प्रकाशित नहीं हुआ है।

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