Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.

Shukla Yajurvediya Rudra Ashtadhyayi (शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी)

55.00

Author Brahmanand Tripathi
Publisher Chaukhamba Surbharti Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2017
ISBN -
Pages 148
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0904
Other Dispatched in 3 days

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी (Shukla Yajurvediya Rudra Ashtadhyayi)

गणनाथंसरस्वतीरविरुद्रबृहस्पतीन् । पञ्चैतान् संस्मरेन्नित्यं वेदवाणीं प्रवर्तये ।।

सभी प्रकार के श्रौत-स्मार्त धर्मों का मूल वैदिक वाङ्मय है। यही सर्वविध ज्ञान-विज्ञान का भण्डार है। कहीं-कहीं वेद को साक्षात् नारायण रूप स्वीकारा है, अन्यत्र इसको परमात्मा का निःश्वसित कहा गया है। यही कारण है कि इसको अनादि तथा अपौरुषेय आदि विशेषणों से गौरवान्वित किया गया है। इसमें धर्म के प्रवृत्ति एवं निवृत्ति लक्षण विद्यमान हैं। प्रवृत्ति लक्षण वाला धर्म निष्काम कर्मों का बोध कराकर उनसे चित्तशुद्धि के द्वारा मनुष्यमात्र को निवृत्ति की ओर ले जाता है और निवृत्ति लक्षणवाला धर्म ज्ञान-वैराग्य की प्राप्ति कराकर मोक्ष प्राप्ति कराने का उत्तम साधन है।

‘शुक्लयजुर्वेदसंहिता’ का महत्त्वपूर्ण अंश यह ‘रुद्राष्टाध्यायी’ है। इसका उल्लेख उपनिषदों, स्मृतियों, पुराणों तथा मीमांसासूत्रों में सुलभ है। इसमें १० अध्यायों का संग्रह है। इसका प्रथम से अष्टम अध्याय तक मूल मन्त्र भाग है, अन्तिम दो अध्याय जगन्मंगल की भावना से शान्ति एवं ईश्वर- प्रार्थना स्वरूप संगृहीत हैं।

वैदिक वाङ्मय का ज्ञान उसके षडंगों (शिक्षा-कल्प-व्याकरण-निरुक्त- छन्द-ज्योतिष ) के ज्ञान से पूर्ण होता है। इसकी एक स्वतन्त्र परम्परा है, जिसका सम्पूर्ण भार द्विजातियों पर निर्भर है। वेदों के सस्वर पाठ को स्वाध्याय कहते हैं। इसका भी एक विशिष्ट महत्त्व है, परन्तु यह पद्धति एकाङ्गीण है। सर्वांगपूर्ण पाठ के लिए प्रत्येक मन्त्र के ऋषि, छन्द, देवता आदि का आचारण कर विनियोग करना और उसके साथ मन्त्र का अर्थज्ञान होना भी आवश्यक है। अर्थज्ञान के बिना किया हुआ स्वाध्याय भारस्वरूप होता है।

धर्मशास्त्रों में रुद्राष्टाध्यायी के पाठ से सभी प्रकार के पापों का विनाश होने की चर्चा है। इसमें भी पुरुषसूक्त के जप-पाठ का विशेष महत्त्व है। यथा-

चमकं नमकं चैव पुरुषं सूक्तमेव च। नित्यं त्रयं प्रयुञ्जानो ब्रह्मलोके महीयते ॥१॥

चमकं नमकं होतृञ्जपेत् पुरुषसूक्तकम्। प्रविशेत् स महादेवं गृहं गृहपतिर्यथा।।२।।

भस्मदिग्धशरीरस्तु भस्मशायी जितेन्द्रियः। सततं रुद्रजाप्योऽसौ परां मुक्तिमवाप्स्यति ।। ३ ।।

रोगवान्पापवांश्चैव रुद्रं जप्चा जितेन्द्रियः। रोगात्पापाद् विनिर्मुक्तो हातुलं सुखमश्नुते ॥४॥

पुरुषसूक्त, नीलसूक्त और चमकाध्याय का जो प्रतिदिन तीन बार पाठ करता है, वह ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। जो उक्त तीन सूक्तों का प्रतिदिन पाठ करता है वह महादेव में उस प्रकार प्रवेश पाता है जिस प्रकार गृहपति अपने घर में। शरीर में भस्म लगाने से, भस्म में शयन करने से, जितेन्द्रिय होकर निरन्तर रुद्री का पाठ करने से मनुष्य मुक्ति प्राप्त करता है। और जो रोगी अथवा पापी इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करते हैं वे भी रोगों तथा पापों से मुक्त होकर अनुपम आनन्द का अनुभव करते हैं।

इसमें ब्रह्म के निर्गुण एवं सगुण रूपों का वर्णन, उपासना का प्रकार, भक्ति-महिमा, रोग-शान्तिविधि तथा यज्ञों का विधान आदि विषय भलीभाँति विवेचित हैं। अतः आध्यात्मिक सुख के लिए अर्थ सहित इसका पाठ द्विजाति मात्र को अवश्य करना चाहिए।

विशेषता-आठवें अध्याय के ४,८, १२, १५,१८,२१,२३,२४,२५ और २७ वें मन्त्र के अन्त में न. लिखा है। इनका प्रयोग ‘षडङ्ग शतरुद्री’ में निम्नोक्त प्रकार से होता है।

षडङ्ग शतरुद्री – सर्वप्रथम प्रारम्भ से ७वें अध्याय तक पढ़ें, फिर ८वें अध्याय के ४ मन्त्रों (‘नमस्ते से कल्पन्ताम्’ तक) को पढ़कर

सम्पूर्ण ५वाँ अध्याय पढ़ें, फिर ८वें अध्याय के अगले ४ मन्त्र पढ़ें। इस प्रकार १० बार आठवें अध्याय के साथ ५ वें अध्याय का पाठकर ८ वें अध्याय के शेष २८, २९ वें मन्त्रों को पढ़कर अन्त में पुनः ५ वें अध्याय को पूरा पढ़ें। ऐसा करने से ५ वें अध्याय की ११ आवृत्तियाँ हो जायेगीं। इसके साथ शान्तिकाध्याय तथा स्वस्तिप्रार्थना (९वाँ-१०वाँ) अध्याय पढ़कर एक पाठ पूर्ण होता है।

शतरुद्री – रुद्राष्टाध्यायी को साङ्गोपाङ्ग प्रस्तुत करने की दृष्टि से इस संस्करण में सम्बन्धित समस्त विषय जोड़ दिये गये हैं। ‘शतरुद्री’ का शास्त्रीय क्रम इसके अन्त में अलग से दे दिया गया है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Shukla Yajurvediya Rudra Ashtadhyayi (शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×