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Sur Vinay Patrika (सूर विनय पत्रिका)

45.00

Author Shree Surdas Ji
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 288
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0161
Other Code - 61

 

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Description

सूर विनय पत्रिका (Sur Vinay Patrika) बहुत दिनों से प्रेमियोंकी माँग थी कि गीताप्रेस सूर-साहित्य प्रकाशित करे। कहा जाता है कि सूरदासजीने सवा लाख पद गाये थे। सूर-सारावलीमें इस भावका एक दोहा भी है; किंतु बहुत खोज करनेपर भी सूरदासजीके पदोंका इतना बड़ा कोई संग्ग्रह कहीं नहीं मिला। नाथद्वारा काँकरोलीके ‘विद्यामन्दिर’ में सूरसागरकी कई प्राचीन हस्तलिखित प्रतियाँ हैं, किंतु उनमें भी पद कुछ सहस्र ही हैं। पूरा सूरसागर उपलब्ध ही नहीं।

जब सूरसागर पूरा उपलब्ध नहीं है, तब जो पद प्रचलित प्रतियोंमें प्राप्त हैं, उन्हींका आधार रह जाता है। प्रचलित पदोंका संग्रह सहज ही मिल सकता है। परंतु जहाँतक पता है, अभीतक सूरदासजीके पदोंकी कहींसे भी कोई टीका नहीं छपी है, जबकि उनके अनेक पद विभिन्न परीक्षाओंके लिये भी स्वीकृत हैं। यह सब बातें ध्यानमें रखकर यह निश्चय किया गया कि उपलब्ध पदोंमेंसे चुने हुए एक-एक विषयके पदोंके संग्रह सरल भावार्थके साथ छापे जायँ। इससे उन पदोंके अर्थको हृदयंगम करनेमें सर्व साधारणको सुविधा होगी। ऐसे नौ संग्रह प्रकाशित करनेका विचार किया गया है। जिनमें पहलेमें ‘विनय’ के पद, दूसरेमें ‘रामचरित्र’ और शेष सात संग्रह ‘भगवान् श्रीकृष्णकी लीला’ के होंगे।

‘सूर-विनय-पत्रिका’ नामसे यह पहला संग्रह आपके सामने है। इसमें वैराग्य, संसारकी अनित्यता, विनय, प्रबोध तथा चेतावनीके सुन्दर-सुन्दर पद हैं, जो उपलब्ध ‘सूरसागर’ की प्रतियोंसे ही चुने गये हैं और किंचित् संशोधनके साथ प्रायः उन्हींके अनुसार पाठ भी रखा गया है। हमारे अनुवादक महोदयने भरसक प्रयत्न किया है कि पदोंका पूरा भाव स्पष्ट हो जाय, परंतु मनुष्यका ज्ञान अल्प है, त्रुटियोंका होना सहज है। अतः पदोंके पाठ और अर्थमें जो त्रुटियाँ रही हैं, उनके लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं। त्रुटियोंकी सूचना यदि पाठक महोदय कृपापूर्वक देंगे तो उन्हें आगेके संस्करणमें सुधारनेका प्रयत्न किया जायगा।

आशा है महान् प्रेमी भक्त श्रीसूरदासजीके विनयके पदोंका यह संग्रह सबके हृदयमें भगवद्भक्तिका पावन भाव जाग्रत् करनेमें सहायक होगा और पाठक इसे पाकर प्रसन्न होंगे।

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